लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमे जनता अपना शासक स्वयं चुनती है . यह जनता द्वारा, जनता के लिए जनता का शासन है . आज के परिस्थितियों ने इस परिभाषा को बदल डाला है.आज यह " जहाँ जनता द्वारा जनता की ऐसी तैसी होती है वहां डेमोक्रेसी होती है."
आज के समय में जब भ्रस्टाचार ने हर जगह अपने पैर फैला दिए है तो यह परिभाषा सही जान पड़ती है, क्योंकि हाल तो जनता का ही ख़राब है. अब्राहिम लिंकन के अनुसार जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शासन हो लोकतंत्र है , लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है और उसकी अनुमति से ही शासन होता है.
हमारे देश में विभिन्न राजनितिक दलों के दलदल से जनता के प्रतिनिधि ( हमारे नेताजी ) पांच वर्षों के लिए चुने जाते है.
मतदान से पहले और बाद में नेताओं के स्वभाव और आचरण में जमीन-आसमान का अंतर होता है.
जनप्रतिनिधि बनने के लिए भी वे साम- दाम-दंड- भेद का सहारा लेते है
सरकार बनाने की भागदौड़ में छोटी पार्टी के छोटे नेता अचानक से बड़े नज़र आने लगते है.
एक बार नेताजी चुन के आ गए तो वह जनप्रतिनिधि न होकर जनशोषक बन जाते है, क्योंकि उनके हाथों में पावर के बड़े बड़े नाखून हो जाते है . वो सरकारी तंत्र का भी गलत इस्तेमाल करते है.
यदि जनता इन सबसे परेशान हो जाये तो उसका मूड पांच साल से पहले भी बदल सकता है लेकिन जनता को हक़ अपने नेताओं के बदलने का पांच साल के बाद ही मिलता है .
जनता अपने नेताओं को तो बदल सकती है पर सरकारी तंत्र को तो नहीं बदल पाती है , और नए नेता के नाखून भी बड़े होने लगते है . लेकिन वो मीडिया के नज़रों से दूर नहीं जा सकते है.
इन सबसे यदि हमें बचना है तो हमें एक ऐसे तंत्र को विकसित करना होगा जो कार्यपालिका , न्यायपालिका और व्यवस्थापिका पर नज़र रख सके. प्रश्न यह उठता है कि यह तंत्र कैसे विकसित किया जाय.
जनलोकपाल ही सबसे अच्छा विकल्प है . जनलोकपाल से सबसे ज्यादा खतरा हमारे जनप्रतिनिधियों को ही है तो फिर इसे आसानी से कैसे आने दे हमारे नेताजी .....?
पिछले कुछ दिनों से सरकार और अन्ना के बीच जनलोकपाल को लेकर खींचतान सा माहौल हो गया है और अन्ना गांधीजी के पदचिन्हों पर चलकर "करो या मरो " वाले तेवर में दिखाई दे रहे है.
यदि हमें अपने देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बचाए रखना है तो जन लोकपाल का समर्थन करना ही होगा. फिलहाल आप "इण्डिया अगेंस्ट करप्सन" को समर्थन देकर जनलोकपाल का समर्थन कर सकते है.
7 टिप्पणियां:
fantastic read !!
accha laga aise ye sab padh kar
बिल्कुल सही-सही और खरी-खरी लिखा है आपने।
शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत सार्थक और विचारणीय लेख....
कार्टून चित्रों के संयोजन ने कथ्य को और प्रभावी बना दिया है
हम आपसे सहमत हैं और अन्ना जी की मुहिम का जोरदार समर्थन करते हैं किन्तु सरकार ने अपना असली मंतव्य जाहिर कर दिया है आज |
हमें आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार रहना होगा क्योंकि कुटिल और बर्बर सरकार का दुस्साहस बाबा रामदेव के आन्दोलन को बाधित कर देने के बाद से बहुत बढा हुआ है |
इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .
देश की वर्तमान दशा और दिशा पर अच्छी कसावदार प्रस्तुति .बधाई .हम आपके साथ हैं इस पहरे दारी में .अन्ना तुम आगे बढ़ो .रेखा तुम सबका पर्दा फाश करो .
बहुत अच्छे कार्टून्स के साथ ज़बरदस्त पोस्ट बनाई है आपने.मज़ा आ गया.
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