स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

भूकंप : खतरा न्यूनीकरण



भूकंप एक प्राकृतिक घटना है ,जिस पर मनुष्य का बहुत कम अथवा नहीं  के बराबर नियंत्रण रहता है  भूकंप की घटना के समय ,स्थान और परिमाण के बारे में सही -सही अनुमान करना कठिन है  ,परन्तु यह आवश्यक है कि भूकंप के बारे में जानकारी रखी  जाए कि इसका सामना कम -से -कम क्षति के साथ कैसे किया जाय .  भारत जैसे देश में भूकंप खतरा न्यूनीकरण का अत्यधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि समुदाय आपदा स्थिति से निपटाने के लिए प्रशिक्षित किया जाय . केवल जागरूक और जिम्मेदार समुदाय ही भूकंप आपदा के प्रभाव को कम कर सकता है  .  
भूकंप की समस्या  से निपटने के लिए सबसे उत्तम तरीका यह है कि भूकंपरोधी संरचनाओं और भवनों का निर्माण किया जाय एवं भूकंप न्यूनीकरण योजना बनाई जाए ,ताकि भूकंप प्रबंधन की प्रत्येक अवस्था के लिए सावधानी बाराती जा सके .

 भूकंप से पहले और बाद में " क्या करें "और "  क्या न करें  " बातों का ध्यान रखा जाए , तो इस आपदा के न्यूनीकरण में निश्चय ही बहुत सहायता मिलेगी . 

भूकंप से पूर्व  

* भूकंपरोधी निर्माण के लिए स्थानीय भवन निर्माण संहिताओं का पालन करें 
* कमजोर संरचनाओं अथवा इंजीनियरी रहित संरचनाओं में भूकंप पूर्व प्रभावी अनुरुपांतर क्कारावाने के लिए सलाह दें . 
*भूकंप आपदा प्रबंधन तैयारी के अभ्यासों और प्रशिक्षण सत्रों में भाग लेंऔर अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित करें . 
प्राथमिक चिकित्सा सीखें   

*अग्रिम रूप से अपने क्षेत्रों के लिए चिकित्सा सुविधा केंद्र , आग बुझाने  का केंद्र , पुलिस थाना और संगठित रहत केन्द्रों की पहचान कर लें एवं उनके साथ संपर्क बनाए रखें . 
* प्रत्येक परिवार के लिए आपदा न्यूनीकरण योजना बनाएँ  . 
* प्रत्येक समुदाय को अपने क्षेत्र में हर घर के व्यक्तियों , पालतू जानवरों का रिकार्ड रखना चाहिए तथा कमजोर और वृद्ध लोगों की सूची बनानी चाहिए 


भूकंप के दौरान 

 *  शांत रहें और दूसरों को आश्वासन दें . 
 *गैस और बिजली के मुख्य प्वाइंटों  को बंद कर दें . 
* यदि घर के अन्दर हैं तो बाहर भय से न भागें और लिफ्ट का उपयोग न करें 
* यदि भवन के अन्दर ,तो मजबूत दरवाजे अथवा कोने में खड़े  रहें या मजबूत पलंग अथवा मेज के नीचे रेंग कर चले जाएँ 
* गिराने वाली वस्तुएं जैसे प्लास्टर ,इंट,आलमारी आदि का ध्यान रखें . 
* कांच की खिड़कियों और शीशों से दूर रहें . 
* यदि बाहर हैं तो ऊँचे ,भवनों ,दीवारों ,बजली के खम्भों और अन्य जिन वस्तुओं के गिराने की संभावना हो उनके पास न जाएँ .यदि संभव हो तो दूर खुले स्थान में चले जाएँ .  
* यदि गाड़ी चला रहें हों तो पुल , फ्लाई -ओवर , खम्भों ,भवनों और पेड़ों से दूर रुकें . 

भूकंप के बाद 

"उत्तरघात" बाद में आने वाले झटकों के लिए तैयार रहें ,जो सामान्यतः कम परिमाण के होते हैं परन्तु पहले भूकंप के प्रभाव से अर्धनष्ट हुई संरचनाओं के बाकी बचे हुए मलबे के गिराने से काफी क्षति पहुँच सकती है . 
* आग लगाने की घटनाओं की जाँच करें . 
* घर में हुए नुकसान की जाँच करें -- यदि आवश्यक हो तो घर खाली कर दें .  
* घायलों की जाँच करें --उनको प्राथमिक उपचार दें ,गंभीर रूप से घायलों को न हिलाएं जब तक कि वह और अधिक चोट लगाने के प्रत्यक्ष खतरे में न घिरे हों और जो मलबे में आंशिक रूप से दबे हुए हैं ,उनको सावधानी पूर्वक बाहर निकालें .  
* सेवा कीसभी लाइनों और उपकरणों की जाँच करें ,जलानेके लिए माचिस या लाइटर का उपयोग न करें जब तक यह पता न लगे कि गैस कहीं से लीक तो नहीं हो रही है . 
* बजली के नीचे गिरे तार आदि को कभी न छुएँ . 
* क्षेत्र में चक्कर लगाएँ और मलबे के नीचे दबे हुए लोगों क़ी आवाजें सुनने क़ी कोशिश करें .  
* सभी क्षेत्रों में जाते समय अपने जुते पहनें विशेषकर मलबे और टूटे हुए कांच के ढेर के पास . 
* सरकारी प्राधिकारियों के साथ सहयोग करें --  सरकारी अधिकारी ,पुलिस और अग्नि शमन सेवा के कर्मचारियों क़ी सहायता और सहयोग कर सकें तो अच्छा रहेगा . 
* क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में जाकर भीड़ न लगाएँ जब तक कि मदद के लिए अनुरोध न किया जाये .  
* न तो अफवाह फैलाएँ और न ही अफवाह सुनें . 
* उन लोगों क़ी खोज करें जो नहीं मिल पाए हैं 

भगवान करे आपके जीवन में इस तरह की परिस्थिति कभी उत्पन न हो ,लेकिन अगर इस तरह की आपदा कभी आए तो मेरे द्वारा दी गई सलाह पर जरुर अमल करें ताकि हमें  कम -से -कम क्षति हो .एक और बात का ध्यान रखें भूकंपरोधी संरचना ही बनाएँ. इसके बनाने से केवल ५ से १०  प्रतिशत की सीमित लागत बढती है और यह लागत अधिक भूकंप रोधन सुरक्षा प्रदान करती है .हम वर्त्तमान भवनों को भी अनुरुपान्तरित करके भूकंपरोधी बना सकते हैं .
अधिकतर ऐसा  देखा गया है कि  गलत तरीके से निर्णित संरचनाएं ही लोगों के मृत्यु का कारण बनती है न कि भूकंप की घटना . अधिकांश भूकंप से सम्बंधित मौतें और वित्तीय नुकसान घरों और अन्य भवनों तथा संरचनाओं के ढह जाने से होता है . हालाँकि कोई भो भवन भूकंप के प्रति रोधी नहीं हो सकता ,परन्तु भवन निर्माण में भूकंप रोधी डिजाइन आपदा न्यूनीकरण में सहयोग करता है 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

एक और धमाका

अभी मुंबई के धमाकों की आग ठंडी भी नहीं हुई थी  कि एक और धमाका दिल्ली में हो गया वह भी हाई कोर्ट के सामने .  इस बार के धमाके में अब तक तेरह लोग मारे गए और करीब सौ लोग घायल हैं . जब तक यह मामला भी ठंडा नहीं हो जाता है तब तक हमारी सारी जाँच एजेंसिया मिलकर कुछ न कुछ ढूँढ़ते हुए लगे रहेंगे . कभी कुछ गिरफ्तारियां हो जाएँगी , पूछताछ होगी , स्केच भी जारी होंगे और फिर आख़िरकार मामला वहीँ पर अटक जायेगा जहाँ बाकी  के मामले अटके पड़े है. 


जैसा कि हर धमाके के बाद होता है जेड श्रेणी की सुरक्षा पाए हुए  नेता लोग कुछ ऐसे कहते पाए जाते है....



" घायलों को -*** लाख रूपये मिलेंगे और मारे गए लोगों के परिजनों को ******" लाख रूपये मिलेंगे."
"देश इस आपदा की स्थिति में एक जुट है "
"हम आतंकवाद का डटकर मुकाबला करेंगे "
"जाँच समिति गठित कर दी गई है "
"ख़ुफ़िया तंत्र को कुछ पता नहीं था "
"ख़ुफ़िया तंत्र को पहले से ही आतंकी घटना की  आशंका थी "


"हमारी संवेदनाये आपके साथ हैं "
"दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा "
"आतंकवाद एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता है "
"अफगानिस्तान में या कई देशों में तो रोज़ ही बम फटते  रहते है  "
"हर धमाके को तो रोका नहीं जा सकता है "
"बड़े बड़े शहरों में इस प्रकार कि घटनाये आम है "
"इन धमाकों कि वजह परप्रांतीय हैं "

लेकिन आम आदमी कि हालत कुछ और ही होती है ....

जो मारे जाते है उन्हें शहीद की संज्ञा भी नहीं दी जाती है .
उनके परिजनों को शव प्राप्त करने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है .
घायल व्यक्ति का उपचार सही से हो रहा है या नहीं ये भी उनके परिजनों को पता नहीं चलता है .
अस्पताल के कर्मचारी सहानभूति दिखाने  आये नेताओं के साथ ज्यादा व्यस्त हो जाते है .
नेताजी जब घायलों को देखते है उस समय उनके परिजन अस्पताल के बाहर खड़े रहते है 
मुआवजा लेने में परिजनों की हवा ख़राब हो जाती है .
एक बार मुआवजा दिया तो सरकार अपनी "जिम्मेदारी ख़तम" यह सोचती है.

आम आदमी जो घटना का शिकार हुआ होता उसके परिजन यह दर्द लिए हुए जिन्दगी काटते हैं  . कई लोग जो केवल घायल   हुए होते हैं वे अपने जख्म के दाग के साथ ही  जिन्दगी जीते है और जब -जब वे अपने जख्म के निशान  को देखते हैं, घटना  का  घाव फिर हरा हो जाता है .  कई अपने अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ जाते हैं.

अब करा जाये तो क्या करा जाये . हमारे ख़ुफ़िया तंत्र में जो लोग बैठे है वे कभी कभी तुक्का मारकर आतंकी घटना की पूर्व सूचना देते रहते है . पुरानी आतंकी घटनाओ के पीछे किसका हाथ था उसका भी अभी तक कुछ पता नहीं . हम दूसरे देश से जिन आतंकवादियों की मांग करते है वे हमारे ही देश में होते हैं 

आखिर ये घटनाये रुके तो रुके कैसे . जो आतंकवादी पकडे जाते है उनके रोजाना के खर्चों का हिसाब बेहिसाब है . 

ये बेहिसाब खर्चा बर्षों तक चलता रहता है और अगर गलती से फांसी की सजा मिल भी जाये तो हमारे नेता लोग इतने नर्म दिल हैं की उनकी संवेदना इन अपराधियों के साथ भी जुड़ जाती है (हमेशा तो संवेदना जनता के साथ नहीं रह सकती )  उन्हें फांसी की सजा में अपना बोट बैंक भी दिखने लगता है .

 आखिर क्यों हमारी सरकार इतनी मजबूर है कि  कुछ- कुछ दिनों पर इस तरह की आतंकी घटनाये होती रहती है और निर्दोष जनता मारी जाती है ........? 


रविवार, 28 अगस्त 2011

एक नई सोच का आगाज़


आज सुबह दस बजे के आस-पास अन्ना ने अपना अनशन तोडा साथ ही विशाल ही जन  समूह को संबोंधित भी किया जो सुबह से ही रामलीला मैदान में इकट्ठे हो रहे थे. इतना विशाल जन समर्थन किसी आन्दोलन को मिला यह एक बहुत बड़ी सफलता है . लोगो ने अन्ना का भरपूर साथ दिया .

 आज जब अन्ना अनशन तोड़ने के बाद अस्पताल जाने के लिए निकले तो मीडिया ने पुरे रास्ते का कवरेज दिखाया . वो जिन जिन रास्तों से निकले लोग सड़को के किनारे खड़े होकर उनकी एक झलक पाने और उनका अभिवादन करने के लिए बेताब दिखे. कई लोग तो उन्हें अस्पताल तक छोड़ के आये . मैं भी टी वी के माध्यम से इस घटनाक्रम को देख रही थी और महसूस कर रही थी की कैसे एक आम इन्सान को आज लोगो ने एक मसीहा के रूप  में अपने सर आँखों पर बिठा लिया है और ऐसा हो भी क्यों नहीं अन्ना वह व्यक्ति है जिन्होंने हमारी सोच को एक नई राह  दिखाई है .

 खासकर आज कल  की युवा पीढ़ी को अन्ना जागरूक करना चाहते है (जिन्हें पिज्जा -बर्गर , डिस्को आदि ज्यादा लुभावने लगते है)  ताकि उस राह पर चलकर वह भविष्य में अपना अधिकार हासिल  कर सके . 

यह जागरूकता इस आन्दोलन में साफ साफ़ दिखाई भी दे रही थी क्योंकि जितने तिरंगे हमने पंद्रह अगस्त को नहीं देखे उससे कहीं ज्यादा पुरे देश में इन बारह दिनों में दिखाई दिए . इस आन्दोलन में बच्चे , बूढ़े , महिलाएं सीधे शब्दों में कहें तो हर प्रान्त और शहर  के लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे .

 अन्ना नाम से  आज देश का लगभग हर नागरिक परिचित है .  कल शाम को जैसे ही लोकसभा और राज्यसभा में अन्ना की तीनो मांगो को स्वीकार कर लिया गया एक उत्सव का माहौल पुरे देश में देखने को मिला . आखिर क्यों, ऐसा क्या हासिल कर लिया हमने ......?

अन्ना ने सरकार के आगे अपनी तीन मांगे राखी थी जो सिटिज़न चार्टर , राज्यों में लोकायुक्तो की नियुक्ति और निचले स्तर  के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने से सम्बद्ध था. इन तीनो मांगो को पुरे दिन के बहस के बाद दोनों सदनों के द्वारा पारित कर दिया गया और स्थायी समिति के पास भेज दिया गया लेकिन लोकपाल को कानूनी रूप देने में अभी समय है. 

अन्ना की  तो देश की जनता हमेशा ही ऋणी रहेगी साथ ही उनके टीम की सदस्यों ने इस आन्दोलन में उनका भरपूर साथ दिया . देश की पूरी जनता ने अपनी एक जुटता दिखा कर इस आन्दोलन  को सफलता दिलाई है . प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिन लोगों ने भी इस आन्दोलन को अपना सहयोग प्रदान किया वे सभी बधाई   के पात्र है.

आप लोग भी इस नई सोच की शुरुआत और इसकी सफलता का जश्न जरुर मनाएँ .एक बार फिर से आप लोगों को इस नए युग के शुरुआत की  बधाई.

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

अन्ना का समर्थन ऐसे भी


इस समय अन्ना के समर्थन में तो पूरा देश खड़ा है  . आप भी विभिन्न तरीको से अन्ना के आन्दोलन का समर्थन कर सकते है .
अपने घर के बाहर हर शाम को एक दिया या मोमबत्त्ती जलाये जो बाहर से दिखाई भी दे . किसी के पूछने पर कहे यह भ्रस्टाचार के विरोध में किये गाये  आन्दोलन को प्रकाशित कर रहा है.

शाम को किसी सार्वजनिक  स्थान पर भीड़ का हिस्सा बनने का  बनने का प्रयास करे 

अपने  फेसबुक , ट्विटर , ऑरकुट आदि के अकाउंट का स्टेटस मेसेज "मैं अन्ना हूँ "  रखे .

अपने ईमेल को भेजते समय ईमेल का अंत अपने नाम से पहले अन्ना लगाकर करे .

आपस में बात करते समय नाम के पहले अन्ना लगाकर बात करे जैसे  "अन्ना अजय जी आप कैसे है ? "

अन्ना के चित्र वाला वालपेपर अपने कंप्यूटर पर लगाये.

जिस तरह आपको कोई शाबाश  कहता है तो आप उत्साह से भर जाते है या आपके अन्दर नई उर्जा का संचार हो जाता है उस तरह जैसे जैसे लोग अन्ना का समर्थन करेंगे अन्ना की उर्जा बढ़ती ही जाएगी .

पर इस समय  ऐसे भी कई लोग है जो अन्ना का समर्थन किसी मजबूरी के कारण नहीं  कर पा रहे है . यह तरीका  उन लोगों के लिए है . मैं आप लोगो को बता दूं की अन्ना को आप भी अपना समर्थन अपनें उर्जा के रूप में दे सकते है . अपनी उर्जा विरोध में नष्ट न करे. अनशन के लिए वैसे भी अन्ना को उर्जा की आवश्यकता तो है ही.  हम लोग यह तो जानते ही है की हम लोग हमेशा ही अपने विचारों के रूप में उर्जा उत्सर्जित करते ही रहते है . यह विचारो से भरी उर्जा अपना लक्ष्य जरुर पूरा करती है. हमें इसी उर्जा का उपयोग करना है.



इसके दो विधियाँ है . 
पहली विधि : यह उन पर लागू होती  है जो रोज़ ध्यान (meditation) करते है .
ध्यान की अवस्था में हमारा अवचेतन मष्तिस्क (subconscious mind)  सक्रिय रहता है और ध्यान की अवस्था में अवचेतन  मष्तिष्क (subconscious mind) बहुत ही शक्तिशाली  होता है. ध्यान के समय अपने मष्तिष्क पटल पर अन्ना हजारे को देखे और मन ही मन कहे " मैं अपने अवचेतन मन (subconscious mind ) से अनुरोध करता हूँ की वह मेरे शरीर की उर्जा प्राकृतिक रूप से अन्ना हजारे के शरीर को उनके  अवचेतन मन (subconscious mind ) की सहायता से पहुचाये " जितना संभव हो उतना समय इस ध्यान में दे.

दूसरी विधि : यह विधि उन लोगो के लिए है जो ध्यान नहीं करते है . आप पहली विधि में दिए निर्देश का पालन  रात में सोने से पहले और सुबह में उठते समय भी कर सकते है .रात में सोने से पहले यदि स्नान करे तो बेहतर होगा. जिस समय आप सोने के लिए जा रहे होते है आपका अवचेतन मन उस समय सक्रिय हो जाता है . सुबह में जिस समय आप उठने ही वाले  होते है उस समय भी आपका अवचेतन मन सक्रिय ही रहता है.अपने मष्तिष्क पटल पर ध्यान दे, उसमे कम्पन्न महसूस करे . उसके बाद पहली विधि से ध्यान करे 

यह उर्जा स्थानान्तरण अवचेतन मन के सक्रिय रहने की अवस्था में ही हो सकता है . यदि विद्वान लोग  इसमें कुछ सुधार करना चाहे तो सुधार कर मुझे भी बताएं  . आप इसे अपने क्षेत्रीय भाषा में लिख कर भी अवश्य शेयर करे   . इसे फेसबुक या ट्विटर पर भी शेयर करे.  आप अपने ईमेल से इस सन्देश को अपने मित्रो और परिजनों तक भेज कर भी अपना समर्थन दे सकते है. 

*(मेरे पति राज कुमार झा की कलम से )

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

खेल खेल में




हमारे  देश में राष्ट्र मंडल खेल हुए . सभी ने दूरदर्शन पर  उदघाटन समारोह देखा. समापन समारोह भी देखा . उदघाटन और समापन समारोह के बीच में जो खेल हुए उसके खाली-खाली स्टेडियम भी देखे . जब इतना सब हो गया तो हर देशवासी चैन की साँस ले रहा था कि फिलहाल तो  कलमाड़ी ने देश की इज्ज़त  बचा ली .तैयारी के समय से ही स्टेडियम से पानी टपका , सेना की मदद ली गई, कही किसी कमरे में सांप मिला .इन सब से निपटकर राष्ट्र मंडल खेल तो संपन्न हो गए. इतना तो सब लोग समझ गए कि शीला मैडम और कलमाड़ी सर वैसे विद्यार्थियों में है जो   इम्तिहान के वक्त ही पढाई करके इम्तिहान पास कर लेते हैं ( अपने स्कूल के दिनों में प्रिंसपल सर की मदद से शायद इम्तिहानो में नक़ल भी जरुर की होगी) . सो मैडम और सर ने राष्ट्र मंडल खेलों की तैयारी भी ऐन वक्त पर शुरू की और उम्मीद यही रक्खी  कि प्रिंसपल सर तो पीछे हैं ही . 

हम सभी को तो अंदाज़ा भी नहीं था कि इन सभी तैयारियों में मैडम और सर अपनी टीम के साथ और भी खास  तैयारियों में लगे हुए है. इन महानुभावों ने स्टेडियम से लेकर  स्ट्रीट लाइट तक किसी को भी नहीं बक्शा . हर जगह धांधली दिखाई दे रही है .
 केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने तीन से 14 अक्टूबर, 2010 के बीच हुए खेलों के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम काप्लैक्स, इंदिरा गाधी स्टेडियम काप्लैक्स, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी तरण ताल, मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम और डॉ कर्णी सिंह शूटिंग रेंज का नवीनीकरण किया था।  इन स्टेडियमों के लिए शुरूआत में कुल 1,000 करोड़ रुपये [10 प्रतिशत कम या ज्यादा] की मंजूरी दी गई थी।  बाद में कैबिनेट ने 2,460 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी।  मज़े की बात यह रही  कि निर्माण एजेंसी ने 345.12 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल नहीं किया।

राष्ट्र मंडल खेल समिति ने उपहार के तौर पर पिछले दो राष्ट्र मंडल खेलों  के मुकाबले तीन गुना ज्यादा टिकट तक बांट दिए। देरी से बिक्री के कारण 100 करोड़ कमाने का लक्ष्य 39.17 करोड़ तक ही सीमित रह गया।ऐसे में यदि शुद्ध राजस्व प्राप्ति पर नजर डालें तो यह सिर्फ 173.96 करोड़ रुपये ही रहा। टिकट बिक्री में नाकाम साबित हुई आयोजन समिति ने स्पांसरशिप के जरिये भी 960 करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य निर्धारित किया, लेकिन हासिल हुए 375.16 करोड़ रुपये। इसमें भी 67 फीसदी हिस्सा सरकारी एजेंसियों अथवा पीएसयू कंपनियों से आया था। 

आयोजन समिति का प्रसार भारती से 23 सितंबर, 2010 में करार किया गया जिससे  24.17 करोड़ रुपए का राजस्व पाया, जबकि अंतरराष्ट्रीय प्रसारण के लिए समिति ने सिर्फ 213.46 करोड़ रुपये का करार किया जिसमें से अभी तक सिर्फ 191.40 करोड़ रुपये ही वसूले जा सके हैं।

फ्लाईओवर की अगर बात करे तो इनके निर्माण की लागत नौ गुना ज्यादा पड़ी। स्ट्रीट लाइट से लेकर सड़कों के सौंदर्यीकरण के और साजोसामान और निर्माण में पांच गुना तक ज्यादा खर्च करने में भी शीला सरकार ने गुरेज  नहीं किया। सड़कों के सौंदर्यीकरण पर 101 करोड़ रुपये तक लागत बढ़ा गड़बड़ी की गई।

सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था के लिए विदेशी कंपनी का सामान मंगाने के शीला सरकार के फैसले से 31.07 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हुए। सड़कों पर बनाए गए साइन बोर्ड पसंद नहीं आने पर शीला मैडम द्वारा  अचानक उन्हें बदलने के फैसले से 14.88 करोड़ का नुकसान हुआ।

जनता का पैसा समझकर सर और मैडम ने खूब उड़ाया. अब हालत यह है कि सर तो कोर्ट की  मेहरबानी से सही  जगह  पहुँच गए है . लेकिन सुनने में आया है  कि सर जिसके साथ चाय पानी कर मन बहलाया करते थे उसका तो तबादला हो गया है. उसका उन्हें सदमा भी लगा जिससे उनकी तबियत ऊपर नीचे होती रहती है.जहाँ तक मैडम की बात है उन्हें बड़ी मैडम का आशीर्वाद प्राप्त है जिससे उनको अपनी सही जगह पहुँचने में अभी वक्त है.

मैं यह सोच रही थी कि इन महानुभावों ने पता नहीं कौन से स्कूल से पढाई  की है वैसे हमारे स्कूल में तो पेन्सिल चुराने वाले बच्चे  की भी जमकर खबर ली जाती थी  कम से कम मुर्गा तो कुछ समय के लिए जरुर बनाया जाता था. ......पर यहाँ तो ..??? 

रविवार, 31 जुलाई 2011

संसद और सांसद



भारतीय लोकतंत्र का आधार संसद है. संसद  के दो भाग है लोक सभा और राज्य सभा . लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता करती है और राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि करते है. इसलिए जनता संसद का आधार है, हम ये भी कह सकते है कि जनता लोकतंत्र का आधार होती है. जनता सांसदों से ये उम्मीद करती है कि वे उनकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे.

 हमारे जन प्रतिनिधि चुनाव से पहले तो जनता के आगे विभिन्न प्रकार के वादे करते हुए नज़र आते है लेकिन चुनाव के बाद वे वी वी आई पी कहलाने लगते है और वी वी आई पी जनता के बीच फिर नज़र नहीं आता है.  

हमारे जनप्रतिनिधि संसद भवन में बैठकर जनता के हित के लिए बड़े बड़े कानून और नीतियों की  रुपरेखा तैयार करते है. इन्ही कानून और नीतियों की आड़ में वे स्वयं का हित करने में मशगूल हो जाते हैं .( अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता ). हमारे संसद सदस्य देश के लिए इतने महत्वपूर्ण होते है कि उनकी  सुख सुविधा और सुरक्षा का हमेशा ही विशेष ध्यान  रखा जाता है. उनके व्यक्तिगत सुरक्षा गार्ड होते हैं.


 संसद भवन की सुरक्षा के तो क्या कहने है .


 सभी संसद सदस्यों को दिल्ली में आवास दिया जाता है.चार वर्ष के सेवाकाल वाले प्रत्‍येक सदस्‍य तो एक हजार चार सौ रूपये प्रति मास की पेंशन दी जाती है. इसके अतिरिक्‍त पाँच वर्ष के बाद की सेवा के प्रत्‍येक वर्ष के लिए 250 रूपये और दिए जाते हैं.प्रत्‍येक सदस्‍य 1500 रूपये प्रतिमास का वेतन तथा ऐसे स्‍थान पर, जहां संसद के किसी सदन का अधिवेशन या समिति की बैठक हो, ड्यूटी पर निवास के दौरान 200 रूपये प्रतिदिन का भत्ता प्राप्‍त करने का हकदार है. मासिक वेतन तथा दैनिक भत्ते के अलावा प्रत्‍येक सदस्‍य 3000 रूपये मासिक का निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और 1000 रूपये प्रतिमास की दर से कार्यालय व्‍यय प्राप्‍त करने का हकदार है. प्रत्‍येक सदस्‍य को प्रतिवर्ष देश के अंदर कहीं भीअपनी पत्‍नी/अपने पति या सहचर के साथ 28 एक तरफा विमान यात्राएं करने की छूट होती है.सदस्‍य को देश के अंदर कहीं भी, कितनी भी बार, वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा के लिए स्‍वयं तथा सहचर के लिए एक रेलवे पास भी मिलता है.प्रत्‍येक सदस्‍य निशुल्‍क टेलीफोन-एक दिल्‍ली में तथा दूसरा अपने निवास स्‍थान पर लगवानें का हकदार है. इसके अलावा, उसे प्रतिवर्ष निशुल्‍क 50,000 स्‍थानीय काल करने की छूट होती है. जब भी संसद सदस्यों की नई खेप आती है तो वे मिलजुलकर अपने वेतन और भत्ते बढ़ा ही  लेते है.

ये सभी सुविधाएँ संसद सदस्यों को वी वी आई पी बनाती है और एक बार संसद भवन में आने के बाद वे  इन सुविधाओं के आदि बन जाते है.यदि वे पांच बर्ष के बाद फिर चुनकर नहीं आ पाते है तो भी पेंशन और मेडिकल की सुविधाएँ यथावत चलती रहती है.और वे वी वी आई पी बने रहते है. आम जनता अपने नेताओं के  इन सुख सुविधाओं का खर्च वहन करती रहती है.

संसद भवन यद्यपि इनकी कर्मस्थली है लेकिन वे कभी कभी इसे कुरुक्षेत्र का मैदान बना देते है.  साल दर साल या सत्र दर सत्र संसद का महत्व  घटता जा रहा है. हर सत्र एक नई हुडदंग को न्योता देता हुआ लगता है. इनका चरित्र चित्रण यहीं पर ख़त्म नहीं हुआ है . यह दल बदलू प्रवृत्ति के तो होते ही  है साथ ही बहुमत के समय दल बदलवाने  की  भी भरपूर क्षमता सिद्ध (साम, दाम, दंड ,भेद ) करते हुए नज़र आते है  इस तरह संसद अपनी गरिमा अपने ही सदस्यों के कारण खोता जा रहा है.

संसद में प्रति मिनट होने वाली कार्यवाही का खर्च 34888 रूपये है.  संसद के पिछले सत्र में काम काज नहीं होने के कारण देश का करीब डेढ़ सौ करोड़ का नुकसान हुआ जिसकी भरपाई भी जनता द्वारा ही हुई. पिछले सत्र में टेलिकॉम घोटाले की  जाँच के लिए नियुक्त पी ए सी के अध्यक्ष द्वारा तैयार रिपोर्ट को ही सरकार के सभी सदस्यों ने ख़ारिज कर दिया था. जबकि पी ए सी यह जाँच करे इसके लिए ख़ारिज करने वाले लोग ही जिम्मेदार  थे .     इन वी वी आई पी की सुख सुविधाओ में उंच- नीच( इनके कैद के समय में  अर्थात जेल में ) हो जाती है तो इनके स्वस्थ्य पर प्रतिकूल  असर पड़ना तुरंत शुरू हो जाता है(जैसे भूलने की बीमारी, सीने में दर्द की शिकायत  ) . राजा और  कलमाड़ी भी आज तक शायद आज़ाद ही घूम रहे होते यदि कोर्ट द्वारा सरकार को फटकार न लगाई गई होती . काले धन के मामले में भी हर बार सर्वोच्च न्यायालय से सरकार को फटकार पड़ती ही रहती है . मंहगाई के कम होने की डेड लाइन प्रधानमंत्री कई बार दे चुके है जो कई बार झूटी सावित हो चुकी है.

 संसद भवन पर 2001में आतंकी हमला हुआ और आतंकी हमले से हमारे नेताओं बचाने में हमारे कई जवान शहीद हो गए . शहीद जवानों ने हमारे नेताओं को तो बचा लिया पर हमारे माननीय नेतागण दस साल बाद भी अपराधियों को सजा नहीं दिला पाए. दोषियों को सजा नहीं मिलने से नाराज शहीदों के परिवारजनों  ने मरणोपरांत मैडल   भी सरकार को लौटा दिया फिर भी हमारे नेता लोग नहीं पसीजे. 



इस तरह देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हमारे संसद सदस्यों की विलासिता पर ही खर्च होता रहता है.(जबकि सही अर्थों में यह पैसा कहीं और लगे तो अच्छा होगा.) . अब जिसके पालन पोषण में  देश का इतना पैसा खर्च हो रहा है वे संसद भवन में बैठकर आखिर करते क्या है ? अगर हम जोड़ने बैठे तो जनता के हित में इन लोगो के द्वारा  किये गए एक दो काम ही याद आतें है..तो फिर आप ही सोचिये  संसद सदस्य देश के कितने काम के हैं.? 

हमारे राजनेताओं को अपने हित में कार्य करने की इतनी आदत पड़ चुकी है की इनको जनलोकपाल में कमियां ही कमियां नजर आती है. कमियां आखिर नज़र क्यों न आयें शिकंजा इन पर ही जो कसेगा. वे इन नज़र आने वाली कमियों को अपने चमचों के माध्यम से भोली भाली जनता तक भी पहुंचा रहे है. हमारे चालू राजनेता कुल्हाड़ी पर पैर मारने की गलती तो कर नहीं सकते इसलिए इन्हें अन्ना और बाबा रामदेव में खामियां नज़र आती है.  इसलिए सरकार ने अपने लोकपाल बिल को ही पास करने का निर्णय किया है 
आगे आगे देखिये होता है क्या ?. फिलहाल देश की नज़र पंद्रह अगस्त से ज्यादा सोलह अगस्त पर है.




शनिवार, 23 जुलाई 2011

मुकेश की याद में


आज मशहूर गायक मुकेश की जन्मतिथि है.  मुकेश का पूरा नाम मुकेश चन्द्र माथुर था.

 लुधियाना के एक कायस्थ परिवार में 22 जुलाई 1923 को इस मशहूर गायक का जन्म हुआ. 1974 में उनको सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार फिल्म "रजनीगंधा" के लिए दिया गया. हिंदी फिल्म के शो मेन कहे जाने वाले राज कपूर पर फिल्माए गए लगभग सभी गीत मुकेश ने ही गाये है. "चाहे वह मेरा जूता है जापानी" या "एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल ". उन्होंने एक से एक सुन्दर गीत हमको विरासत में दिए है जो अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते है. 

15 मई  2003  को उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा एक डाक टिकट भी जारी किया  गया.
 आज मुकेश के जन्मदिन पर प्रस्तुत है उनका एक दुर्लभ गीत और साथ ही  साथ एक प्रसिद्द कर्णप्रिय गीत  भी. आप भी सुनिए .


 अच्छा तो लगा ही होगा . मुकेश के तो सभी गीत अच्छे है.