स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

शनिवार, 14 मई 2011

मुआवजा और मनमानी



भारत सन १९४७  में आजाद हो चुका है, परन्तु अंग्रेजी सरकार की नीतियों और कानूनों का अनुसरण करते हुए ऐसा लग रहा है की जैसे की हम पूरी तरह से आजाद नहीं हो पाए है . अंग्रेज तो  बहुत पहले जा चुके है परन्तु उनके द्वारा बनाये हुए बहुत से कानून को हम आज भी ढो रहे है जैसे की वह हमारी खानदानी विरासत हो . भारत सरकार इस इक्कीसवी सदी में भी भारतीय नागरिकों की स्वतंत्र सोच पर इन कानूनों के माध्यम से लगाम लगाये हुए है . इन कानूनों में प्रमुख कानून जैसे 
ओफिसिअल सीक्रेट एक्ट १९२३
लैंड एक्युजेसन एक्ट १८९४
रिजर्ब बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट १९३४
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और ऐसे ही जाने कितने एक्ट.
क्या हमें इन नीतियों और कानूनों में पुनः संसोधन करने की  आवश्यकता आज भी  महसूस नहीं होती है.
यदि आप नौकरीपेशा है और कभी आपको ऐसा कह दिया जाय कि अब आप नौकरी नहीं कर सकते है और इसके बदले ये मुआवजा ले लीजिये तो जरूरी नहीं है कि आप खुश हो जायेंगे वो भी तब जब आप किसी अन्य क्षेत्र में कार्य कर पाने में असमर्थ हो .


किसान जिसके पास केवल जमीन होती है और उस जमीन से वह फसल उगाकर अपने परिवार के बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ साथ  हमारे देश कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है . किसान केवल फसल उगाना जनता है  और कई पीढ़ी से केवल फसल उगा रहा है .किसान के लिए यही  नौकरी है और यही व्यवसाय है.
किसानो के जमीन के अधिग्रहण का प्रयास  प्रगति के नाम पर चाहे जैतापुर हो या नॉएडा  होता ही रहा है जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी  करता ही रहा है.. 


उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने नॉएडा से आगरा तक एक्सप्रेस वे बनाने के मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा है. वह फ़ॉर्मूला वन रेस के लिए विदेशों जैसा रेसिंग ट्रेक भी बनाना चाहती है .पिछले बर्ष २००९-१० में किसानो से अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा बसपा सरकार ने दिया था और मायावती जी का यह भी दावा है कि उनकी सरकार ने अन्य पडोसी राज्यों के मुकाबले बेहतर मुआवजा और पुनर्वास पॅकेज दिया था. अब किसानो का आन्दोलन यह साबित कर रहा है कि उनके साथ धोखा किया गया . दरसल बात यह है कि नॉएडा और आस पास की जमीन अब बेशकीमती हो गई है. पर सरकारी कीमत उससे कही भी मेल नहीं खाती है.


चूँकि देश की राजधानी दिल्ली से करीब होने तथा निर्यात सम्बन्धी सभी सुबिधायें उपलब्ध होने के कारण बड़ी बड़ी कंपनियों ने वहां अपना ठिकाना बना लिया है.तो इस हालत में किसान कैसे बर्दाश्त करे कि उनकी उपजाऊ और कीमती जमीन १८९४ में बने अंग्रेजो के द्वारा बने भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर सरकार हथिया ले और उसे भरी मुनाफे पर बिल्डरों के हवाले कर दे . वे चाहते है की उन्हें रियल इस्टेट बिजनेस  के भागीदार की तरह मुआवजे की रकम मिले .

इस घटना का फायदा उठा कर कांग्रेस और भाजपा अपनी राजनीती चमकाने में लगे है.क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य में अगले बर्ष विधान सभा चुनाव भी होने वाले है. अब मायावती भी क्यों पीछे रहे सो उन्होंने भी इन पार्टियों से यह मुद्दा संसद में उठाने के लिए कहा और उस मुद्दे को केंद्र पर डालते हुए कहा की वह मुआवजा कानून में संसोधन करे.
मजे की बात यह है की २००७ में तैयार किये गए भू अधिग्रहण और पुनर्वास से जुड़े हुए दो विधेयक के मसौदे केंद्र सरकार के ठन्डे बस्ते में है.   सच्चाई तो यह है कि व्यावसायिक हितों और आद्योगिक समूहों को हर पार्टी सरक्षण देती है . 
खैर आगे जो भी हो फिलहाल तो कोंग्रेस और भाजपा दोनों ही उत्तर प्रदेश की राजनीती में अपने आपको किसानो का हमदर्द  बनने कि होड़ में लगे है.

6 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आलेख बहुत अच्छा है चित्र भी आलेख के अनुसार ही है किसी पत्रकार से भी बहुत ज्यादा अच्छे। विचार भी अच्छे प्रस्तुत किये है।मगर होता क्या है कि सारे कानून एक दम कैसे बदल दिये जाये। जैसे जैसे परिस्थितियों में परिवर्तन हो रहा है और जरुरत के अनुसार तब्दीली भी हो रही है। आपने जो एक्ट के नाम व सन लिखे है वह सही है। होता क्या है एक्ट का सन तो वही रहता है किन्तु उनकी धाराओं मे आवश्यक संशोधन कर दिये जाते है। जिस एक्ट पर आपका लेख आधारित है अभी तक तो जरुरत नहीं पडी थी अब जब हादसा हो गया तब सबका ध्यान गया। पहले से कल्पना करके संशोधन नही किये जासकते । दीवानी फौजदारी सब मे संशोधन हुये है। सीपीसी में कितने संशोधन हुये अभी हाल ही में आवश्यकता के अनुसार मगर कहलायेगा क्या सीपीसी 1908 ही । आज आपके सब लेख पढे ओसामा वाला भी, मात्र दिवस वाला भी और भोपाल गैस वाला भी । आपमें लेखन क्षमता गजब की है मै चाहता हूं आपके लेख ज्यादा से ज्यादा ब्लाग के पाठक पढे।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सार्थक लेख.... सारी बातें विचारणीय हैं रेखा .... पर इस देश के राजनेता अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर कुछ सोचें तो....

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छा विषय, बेहतर चिंतन और सुझाव। बधाई

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सामयिक मुद्दा उठाया है आपने।
किसानों को उनकी जमीन का वास्तविक मुआवजा नहीं मिल पाता।
नेता और बिल्डर्स किसानों की जमीन से मालामाल हो रहे हैं।

Sunil Kumar ने कहा…

सच्चाई से रूबरू कराती पोस्ट, आपके ब्लाग पर पहली बार आया और सार्थक पोस्ट पढ़ने को मिली| धन्यवाद.....

blogtaknik ने कहा…

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