हमारे देश में राष्ट्र मंडल खेल हुए . सभी ने दूरदर्शन पर उदघाटन समारोह देखा. समापन समारोह भी देखा . उदघाटन और समापन समारोह के बीच में जो खेल हुए उसके खाली-खाली स्टेडियम भी देखे . जब इतना सब हो गया तो हर देशवासी चैन की साँस ले रहा था कि फिलहाल तो कलमाड़ी ने देश की इज्ज़त बचा ली .तैयारी के समय से ही स्टेडियम से पानी टपका , सेना की मदद ली गई, कही किसी कमरे में सांप मिला .इन सब से निपटकर राष्ट्र मंडल खेल तो संपन्न हो गए. इतना तो सब लोग समझ गए कि शीला मैडम और कलमाड़ी सर वैसे विद्यार्थियों में है जो इम्तिहान के वक्त ही पढाई करके इम्तिहान पास कर लेते हैं ( अपने स्कूल के दिनों में प्रिंसपल सर की मदद से शायद इम्तिहानो में नक़ल भी जरुर की होगी) . सो मैडम और सर ने राष्ट्र मंडल खेलों की तैयारी भी ऐन वक्त पर शुरू की और उम्मीद यही रक्खी कि प्रिंसपल सर तो पीछे हैं ही .
हम सभी को तो अंदाज़ा भी नहीं था कि इन सभी तैयारियों में मैडम और सर अपनी टीम के साथ और भी खास तैयारियों में लगे हुए है. इन महानुभावों ने स्टेडियम से लेकर स्ट्रीट लाइट तक किसी को भी नहीं बक्शा . हर जगह धांधली दिखाई दे रही है .
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने तीन से 14 अक्टूबर, 2010 के बीच हुए खेलों के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम काप्लैक्स, इंदिरा गाधी स्टेडियम काप्लैक्स, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी तरण ताल, मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम और डॉ कर्णी सिंह शूटिंग रेंज का नवीनीकरण किया था। इन स्टेडियमों के लिए शुरूआत में कुल 1,000 करोड़ रुपये [10 प्रतिशत कम या ज्यादा] की मंजूरी दी गई थी। बाद में कैबिनेट ने 2,460 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी। मज़े की बात यह रही कि निर्माण एजेंसी ने 345.12 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल नहीं किया।
राष्ट्र मंडल खेल समिति ने उपहार के तौर पर पिछले दो राष्ट्र मंडल खेलों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा टिकट तक बांट दिए। देरी से बिक्री के कारण 100 करोड़ कमाने का लक्ष्य 39.17 करोड़ तक ही सीमित रह गया।ऐसे में यदि शुद्ध राजस्व प्राप्ति पर नजर डालें तो यह सिर्फ 173.96 करोड़ रुपये ही रहा। टिकट बिक्री में नाकाम साबित हुई आयोजन समिति ने स्पांसरशिप के जरिये भी 960 करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य निर्धारित किया, लेकिन हासिल हुए 375.16 करोड़ रुपये। इसमें भी 67 फीसदी हिस्सा सरकारी एजेंसियों अथवा पीएसयू कंपनियों से आया था।
आयोजन समिति का प्रसार भारती से 23 सितंबर, 2010 में करार किया गया जिससे 24.17 करोड़ रुपए का राजस्व पाया, जबकि अंतरराष्ट्रीय प्रसारण के लिए समिति ने सिर्फ 213.46 करोड़ रुपये का करार किया जिसमें से अभी तक सिर्फ 191.40 करोड़ रुपये ही वसूले जा सके हैं।
फ्लाईओवर की अगर बात करे तो इनके निर्माण की लागत नौ गुना ज्यादा पड़ी। स्ट्रीट लाइट से लेकर सड़कों के सौंदर्यीकरण के और साजोसामान और निर्माण में पांच गुना तक ज्यादा खर्च करने में भी शीला सरकार ने गुरेज नहीं किया। सड़कों के सौंदर्यीकरण पर 101 करोड़ रुपये तक लागत बढ़ा गड़बड़ी की गई।
सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था के लिए विदेशी कंपनी का सामान मंगाने के शीला सरकार के फैसले से 31.07 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हुए। सड़कों पर बनाए गए साइन बोर्ड पसंद नहीं आने पर शीला मैडम द्वारा अचानक उन्हें बदलने के फैसले से 14.88 करोड़ का नुकसान हुआ।
जनता का पैसा समझकर सर और मैडम ने खूब उड़ाया. अब हालत यह है कि सर तो कोर्ट की मेहरबानी से सही जगह पहुँच गए है . लेकिन सुनने में आया है कि सर जिसके साथ चाय पानी कर मन बहलाया करते थे उसका तो तबादला हो गया है. उसका उन्हें सदमा भी लगा जिससे उनकी तबियत ऊपर नीचे होती रहती है.जहाँ तक मैडम की बात है उन्हें बड़ी मैडम का आशीर्वाद प्राप्त है जिससे उनको अपनी सही जगह पहुँचने में अभी वक्त है.
मैं यह सोच रही थी कि इन महानुभावों ने पता नहीं कौन से स्कूल से पढाई की है वैसे हमारे स्कूल में तो पेन्सिल चुराने वाले बच्चे की भी जमकर खबर ली जाती थी कम से कम मुर्गा तो कुछ समय के लिए जरुर बनाया जाता था. ......पर यहाँ तो ..???
19 टिप्पणियां:
सच कहा... आज ह्मारे देश की जो हालत है..सोचने को मजबू्र होजाती हूँ कि ह्मारी आनेवाली पीढी का क्या होगा ...?????
आपकी पोस्ट वहीं अँगुली रखती है जहाँ सबसे अधिस पीड़ा होती है. छोटी मैडम हो या बड़ी मैडम, छोटे सर हों या बड़े सर कोई भी अपने भ्रष्ट सिस्टम को बदलना नहीं चाहता.
दरिया समंदर खा गए और कश्तियाँ भी खा गए
सड़क पुल भी खा गए और बस्तियाँ भी खा गए
Informative post .
रेखा जी आप ने बड़ा ही सुन्दर रंग बिखेरा है ! काश ये अब भी सुधर जाते ! बधाई
अफसोस,कि क़ानून बनाने वाले ही इसका मखौल उड़ाकर न सिर्फ जनता बल्कि दुनिया भर के सामने अप्रिय उदाहरण पेश कर रहे हैं। चिताजनक यह भी है कि हमारे भीतर वह आग क्यों नहीं है जो अरब के कुछ देशों में देखी गई है!
मौजा ही मौजा है।
झोला छाप भ्रस्टाचारी महाविद्यालय
अच्छा लिखा है आपने ...... शुभकामनायें !
बहुत उम्दा प्रस्तुति....
जनता का पैसा है प्यारे, लूट सके तो लूट...
आंकड़े सब कुछ बोल रहे हैं।
बहुत सच कहा है..बहुत सार्थक आलेख..
बहन रेखा जी, बहुत तथ्यात्मक तरीके से आपने आंकड़ों को प्रस्तुत किया है| इन्हें नज़र अंदाज़ किया जाना असंभव है| शानदार व बेहतरीन आलेख|
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
जय हो जनतंत्र की !
क्या कहा जाये!!!
khel -khel main khel khel gaye ye mahan khiladi.
jankarim parak aalekh jetu aabhar,
कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
क्या कहें ,
गांव में कहावत है -मेंड़ ही खेत खा गई
सुन्दरता से भावों और तथ्यों को उकेरा आपने...
सार्थक लेखन...
सादर बधाई...
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