स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

शुक्रवार, 17 जून 2011

सबसे बड़े लोकतंत्र की जरुरत

  

भारत  विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से एक है और आदि काल से ऋषि मुनियों का देश माना गया है . यह  विश्व का सबसे बड़ा लोक्तान्त्रतिक देश है . यहाँ तीन सौ के करीब भाषाए बोली जाती है और सभी धर्मो के लोग यहाँ मिलजुल के रहते है. भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य की उपाधि देता है.भारत एकलोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका. न्याय पालिका  का प्रमुख सर्वोच्च न्यायलय होता है  राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख होने के साथ साथ तीनो सेनाओं का प्रमुख भी होता है . प्रधानमंत्री  सरकार का  का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्ति उसके हाथ में होती  है. व्यवस्थ्पिका का प्रमुख संसद होता है जिसके दो अंग लोकसभा और राज्यसभा होते है . 

लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमे जनता अपना शासक स्वयं चुनती है . यह जनता द्वारा, जनता के लिए  जनता का शासन है . आज के परिस्थितियों ने इस परिभाषा को बदल डाला है.आज यह " जहाँ जनता द्वारा जनता की ऐसी तैसी होती है वहां डेमोक्रेसी होती है."

आज के समय में जब भ्रस्टाचार ने हर जगह अपने पैर फैला दिए है तो यह परिभाषा  सही जान पड़ती है, क्योंकि हाल तो जनता का ही ख़राब है. अब्राहिम लिंकन के अनुसार जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शासन हो लोकतंत्र है , लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है और उसकी अनुमति से ही शासन होता है. 

हमारे देश में विभिन्न राजनितिक दलों के दलदल से जनता के प्रतिनिधि ( हमारे नेताजी ) पांच वर्षों के लिए  चुने जाते है. 

मतदान से पहले और बाद में नेताओं के स्वभाव और आचरण में जमीन-आसमान का अंतर होता है. 

जनप्रतिनिधि बनने के लिए भी वे साम- दाम-दंड- भेद का सहारा लेते है   


सरकार बनाने की भागदौड़ में छोटी पार्टी के छोटे नेता अचानक से बड़े नज़र आने लगते है.

एक बार नेताजी चुन के आ गए तो वह जनप्रतिनिधि न होकर जनशोषक बन जाते है, क्योंकि उनके हाथों में पावर के बड़े बड़े नाखून हो जाते है . वो सरकारी तंत्र का भी गलत इस्तेमाल करते है. 

यदि जनता इन सबसे परेशान हो जाये तो उसका मूड पांच साल से पहले भी बदल सकता है  लेकिन जनता को हक़ अपने नेताओं के बदलने का पांच साल के बाद ही मिलता है .

 जनता अपने नेताओं को तो बदल सकती है पर सरकारी तंत्र को तो नहीं बदल पाती है ,  और नए नेता के नाखून भी बड़े होने लगते है . लेकिन वो मीडिया  के नज़रों से दूर नहीं जा सकते है. 


इन सबसे यदि हमें बचना है तो हमें एक ऐसे तंत्र को विकसित करना होगा जो कार्यपालिका , न्यायपालिका और व्यवस्थापिका पर नज़र रख सके. प्रश्न यह उठता है कि यह तंत्र कैसे  विकसित किया जाय. 
जनलोकपाल ही सबसे अच्छा विकल्प है . जनलोकपाल से सबसे ज्यादा खतरा हमारे जनप्रतिनिधियों को ही है  तो फिर इसे आसानी से कैसे आने दे हमारे नेताजी .....?

पिछले कुछ दिनों से सरकार और अन्ना के बीच जनलोकपाल को लेकर खींचतान सा माहौल हो गया है और अन्ना गांधीजी के पदचिन्हों पर चलकर "करो या मरो " वाले तेवर में दिखाई दे रहे है. 

यदि हमें अपने देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बचाए रखना है तो जन लोकपाल का समर्थन करना ही होगा.  फिलहाल आप "इण्डिया अगेंस्ट करप्सन" को समर्थन देकर जनलोकपाल का समर्थन कर सकते है.     

7 टिप्‍पणियां:

Jyoti Mishra ने कहा…

fantastic read !!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

accha laga aise ye sab padh kar

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

बिल्कुल सही-सही और खरी-खरी लिखा है आपने।
शुभकामनाएं।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत-बहुत सार्थक और विचारणीय लेख....

कार्टून चित्रों के संयोजन ने कथ्य को और प्रभावी बना दिया है

हम आपसे सहमत हैं और अन्ना जी की मुहिम का जोरदार समर्थन करते हैं किन्तु सरकार ने अपना असली मंतव्य जाहिर कर दिया है आज |

हमें आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार रहना होगा क्योंकि कुटिल और बर्बर सरकार का दुस्साहस बाबा रामदेव के आन्दोलन को बाधित कर देने के बाद से बहुत बढा हुआ है |

virendra sharma ने कहा…

इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .

virendra sharma ने कहा…

देश की वर्तमान दशा और दिशा पर अच्छी कसावदार प्रस्तुति .बधाई .हम आपके साथ हैं इस पहरे दारी में .अन्ना तुम आगे बढ़ो .रेखा तुम सबका पर्दा फाश करो .

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बहुत अच्छे कार्टून्स के साथ ज़बरदस्त पोस्ट बनाई है आपने.मज़ा आ गया.