यु पी ए सरकार ने शुक्रवार शाम को डीजल , रसोई गैस और मिटटी तेल के दम में भारी बढ़ोतरी करते हुए देश की आम जनता को महंगाई के बोझ तले दबा के रख दिया है.
इस सब के बाबजूद देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन आयल कारपोरेशन के अनुसार इन तीनो चीजो की कीमतों में वृद्धि तथा उत्पाद एवं सीमाशुल्क में कटौती के बाद भी सरकारी तेल विपणन कंपनियों की कमाई का नुकसान १२१७०४ करोड़ रूपये रहेगा. पहले ये घटा एक लाख ७११४० कोरोड़ रूपये तक जा सकता था.
कंपनी के चेयरमेन आर एस बुटोला की माने तो डीजल में तीन रूपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी और आयत शुल्क की दर को ७.५ घटाकर २.५ प्रतिशत किये जाने के बाबजूद डीजल की बिक्री पर कंपनियों को आयत मूल्य की तुलना में प्रति लीटर डीजल बिक्री से ६.९ रूपये का नुकसान हो रहा है. इसी तरह १४.२ किलो के रसोई सिलेंडर पर ३३१.१३ रूपये और मिटटी तेल पर २५.३७ रूपये का नुकसान है. पेट्रोल की स्थिति भी जग जाहिर है .पिछले कुछ महीने से पेट्रोल के दाम भी क्रमबद्ध तरीके से बढ़ाये जाते रहे हैं.
पेट्रोलियम उत्पादों में उत्पाद शुल्क (१४%),सीमा शुल्क (७.५%) और वेट (२०%) है. .इसका मतलब ये है कि तेल की असली कीमत देय मूल्य का पचपन प्रतिशत ही है , पेंतालिस प्रतिशत तो केंद्र और राज्य सरकार की जेब में ही जाता है.
आम जनता की स्थिति कुछ इस तरह हो गई है
हम लोग ये तो आसानी से समझते है कि डीजल के मूल्य वृद्धि से महंगाई पर सीधा असर पड़ेगा और अन्य रोजमर्रा की बस्तुओं के मूल्य अपने आप बढ़ जायेंगे . रोजमर्रा की चीजो के दाम बढ़ते है तो हम कहते है कि महंगाई बढ़ गई है.
जहाँ भी देखिये हर जगह मंहगाई ने अपना तांडब मचा के रखा है .चाहे वह दूध , चीनी ,सब्जी या दालें( सभी प्रकार के खाद्य उत्पाद ) हों. पिछले कुछ दिनों से इनके दाम लगातार बढ़ते ही रहे है . आख़िरकार आम जनता खाए तो क्या खाए .
आम जनता ही क्यों निम्न माध्यम वर्ग से उच्च माध्यम वर्ग तक सभी इसके लपेटे में आ गए है.
सरकार को चाहिए की डीजल, तेल,पेट्रोल और रसोई गैस जैसी अत्यावश्यक वस्तुओं की अलग श्रेणी बनाकर उन्हें हर प्रकार के कर से मुक्त रखा जाये .
हर प्रकार के कर से मुक्त होने पर तब यदि सरकार कहे की वह इन चीजो पर सब्सिडी दे रही है तो लोगों के समझ में आएगी .
सरकार एक मुह से तो कहती है कि वह सब्सिडी दे रही है वहीँ टैक्स के रूप में लोगों की जेब भी काट रही है. इतनी मंहगाई के बाबजूद सरकार मंहगाई से जुड़े प्रश्न पर अपने हाथ खड़े कर देती है और जनता को अपनी मजबूरियां गिनाती नज़र आती है. कुल मिलाके वर्तमान परिस्थिति ऐसी है कि आमदनी अट्ठनी ही रह गई है और खर्चा रुपया की जगह पांच रूपये कहे तो सही रहेगा.
13 टिप्पणियां:
रेखा जी,
क्या खूब तालमेल किया है, फ़ोटो व लेख का बहुत ही अच्छा लगा।
सार्थक सामयिक लेख..........
व्यंग्य कार्टून चित्रों का जबरदस्त प्रभावकारी संयोजन.............
excellent post .
बहुत अच्छा लगा आपकी बातें सुन्दर कार्टूनों के साथ पढकर.महंगाई अब हर 'रेखा' पार करती जा रही है रेखा जी.
बहुत अच्छा लगा आपके इस ब्लॉग पर
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कल 29/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
पूरे देश इस वक़्त एक ही मुद्दा छाया हुआ है ....चित्र के माध्यम से अच्छी प्रस्तुति
आपने मंहगाई समस्या की नब्ज़ पर जिस विश्लेषणात्मक ढंग से तथ्य प्रस्तुत किए हैं वह प्रशंसनीय है.
आजकल तो एक ही कहावत याद आती है कि ‘जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था.’
सटीक कार्टूनों का समावेश. हार्दिक बधाई.
सार्थक सामयिक लेख..........
वाह सार्थक व सामयिक....
वस्तु स्थिति का सही और सरल दिग्दर्शन .कार्टूनों और विश्लेषण की जुबानी .आभार भी बधाई भी धार दार पोस्ट के लिए .तेल देख तेल की धार देख .इब्तिदाए इश्क है रोता है क्या ,आगे आगे देखिये होता है क्या .
रेखा जी, बहुत ही अच्छा लिखा है एकदम सही व सटीक ...।
महंगाई मार गई.
वाह, मेरे ब्लॉग(मेरी बातें) के नाम का एक और ब्लॉग से परिचय हुआ आज :)
कार्टून मस्त हैं, महंगाई से तो सभी त्रस्त हैं. क्या करें.
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