स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

एक और धमाका

अभी मुंबई के धमाकों की आग ठंडी भी नहीं हुई थी  कि एक और धमाका दिल्ली में हो गया वह भी हाई कोर्ट के सामने .  इस बार के धमाके में अब तक तेरह लोग मारे गए और करीब सौ लोग घायल हैं . जब तक यह मामला भी ठंडा नहीं हो जाता है तब तक हमारी सारी जाँच एजेंसिया मिलकर कुछ न कुछ ढूँढ़ते हुए लगे रहेंगे . कभी कुछ गिरफ्तारियां हो जाएँगी , पूछताछ होगी , स्केच भी जारी होंगे और फिर आख़िरकार मामला वहीँ पर अटक जायेगा जहाँ बाकी  के मामले अटके पड़े है. 


जैसा कि हर धमाके के बाद होता है जेड श्रेणी की सुरक्षा पाए हुए  नेता लोग कुछ ऐसे कहते पाए जाते है....



" घायलों को -*** लाख रूपये मिलेंगे और मारे गए लोगों के परिजनों को ******" लाख रूपये मिलेंगे."
"देश इस आपदा की स्थिति में एक जुट है "
"हम आतंकवाद का डटकर मुकाबला करेंगे "
"जाँच समिति गठित कर दी गई है "
"ख़ुफ़िया तंत्र को कुछ पता नहीं था "
"ख़ुफ़िया तंत्र को पहले से ही आतंकी घटना की  आशंका थी "


"हमारी संवेदनाये आपके साथ हैं "
"दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा "
"आतंकवाद एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता है "
"अफगानिस्तान में या कई देशों में तो रोज़ ही बम फटते  रहते है  "
"हर धमाके को तो रोका नहीं जा सकता है "
"बड़े बड़े शहरों में इस प्रकार कि घटनाये आम है "
"इन धमाकों कि वजह परप्रांतीय हैं "

लेकिन आम आदमी कि हालत कुछ और ही होती है ....

जो मारे जाते है उन्हें शहीद की संज्ञा भी नहीं दी जाती है .
उनके परिजनों को शव प्राप्त करने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है .
घायल व्यक्ति का उपचार सही से हो रहा है या नहीं ये भी उनके परिजनों को पता नहीं चलता है .
अस्पताल के कर्मचारी सहानभूति दिखाने  आये नेताओं के साथ ज्यादा व्यस्त हो जाते है .
नेताजी जब घायलों को देखते है उस समय उनके परिजन अस्पताल के बाहर खड़े रहते है 
मुआवजा लेने में परिजनों की हवा ख़राब हो जाती है .
एक बार मुआवजा दिया तो सरकार अपनी "जिम्मेदारी ख़तम" यह सोचती है.

आम आदमी जो घटना का शिकार हुआ होता उसके परिजन यह दर्द लिए हुए जिन्दगी काटते हैं  . कई लोग जो केवल घायल   हुए होते हैं वे अपने जख्म के दाग के साथ ही  जिन्दगी जीते है और जब -जब वे अपने जख्म के निशान  को देखते हैं, घटना  का  घाव फिर हरा हो जाता है .  कई अपने अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ जाते हैं.

अब करा जाये तो क्या करा जाये . हमारे ख़ुफ़िया तंत्र में जो लोग बैठे है वे कभी कभी तुक्का मारकर आतंकी घटना की पूर्व सूचना देते रहते है . पुरानी आतंकी घटनाओ के पीछे किसका हाथ था उसका भी अभी तक कुछ पता नहीं . हम दूसरे देश से जिन आतंकवादियों की मांग करते है वे हमारे ही देश में होते हैं 

आखिर ये घटनाये रुके तो रुके कैसे . जो आतंकवादी पकडे जाते है उनके रोजाना के खर्चों का हिसाब बेहिसाब है . 

ये बेहिसाब खर्चा बर्षों तक चलता रहता है और अगर गलती से फांसी की सजा मिल भी जाये तो हमारे नेता लोग इतने नर्म दिल हैं की उनकी संवेदना इन अपराधियों के साथ भी जुड़ जाती है (हमेशा तो संवेदना जनता के साथ नहीं रह सकती )  उन्हें फांसी की सजा में अपना बोट बैंक भी दिखने लगता है .

 आखिर क्यों हमारी सरकार इतनी मजबूर है कि  कुछ- कुछ दिनों पर इस तरह की आतंकी घटनाये होती रहती है और निर्दोष जनता मारी जाती है ........? 


34 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक और सार्थक लेखन ... इन प्रश्नों का उत्तर हमारे नेताओं के पास नहीं है ..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

संतुलित शब्दों और शालीन भाषा में सत्य को लिखना असाधारण कार्य है.आपकी लेखनी को नमन.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात है...

Atul Shrivastava ने कहा…

मौजूदा हालात का बेहतरीन चित्रण।

Bharat Bhushan ने कहा…

आपके प्रश्नों के स्टीरियो टाइप्ड उत्तर कल गृहमंत्री जी से टीवी पर सुन लिए हैं. क्या हो सकता है.

Arunesh c dave ने कहा…

बेहतर यह होगा कि हमने जैसे इन भ्रष्ट और नकारे नेताओं को स्वीकार कर लिया है वैसे ही आतंकवाद को भी कर लें दुखी होने से अच्छा है कि कुछ पैसे मरने वालों के घर भिजवा दें और सोचें चलो अपन से जो हो सका कर लिया

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

नेताओं के पास आंख-कान तो होते नहीं, केवल मुंह होता है जिसका उपयोग वे आश्वासन देने के लिए करते हैं।
आपका यह चित्र-लेख बहुत अच्छा लगा।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक आलेख.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सही जगह निशाना लगाया
बहुत अच्छा

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत बढ़िया तरीके से आपने बात रखी है.बहुत बढ़िया लेख
बहन रेखा जी आभार

virendra sharma ने कहा…

परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।

घरु मंत्री जी !अगर आप एक भी हमला नहीं रोक सकते तो फिर आंतरिक सुरक्षा पर क्यों इतना खर्च करते हो ?

लोग तो अपने गृह मंत्री से यह अपेक्षा करतें हैं ,कि "हरेक हमला नहीं रोका जा सकता "ऐसा बोलकर वह हमलावरों का हौसला तो नहीं बढायेंगें।
हमला नहीं रोक सकते तो कुर्सी खाली कर सकते हो .उसमे क्या दिक्कत है ?
पुलिस महकमे में रिक्त पड़ी ७ लाख पोस्ट भर सकतें हैं ।
मसखरे तिहाड़ और बेऊर खोरों से जेड श्रेणी की सुरक्षा वापस ले सकते हो ।
इसमें क्या दिक्कत है .आखिर इन मसखरों को चारा भक्षियों को ,सर्व -भक्षियों को ख़तरा है किससे ?
शर्म की बात यह है रेखाजी -डॉ राम मनोहर अस्पताल से यह घोषणा की गई जिनके परिअजं मारे गयें हैं वह उनके लिए कफन का इंतजाम करें .
कैसे इंतजामात हैं इस संवेदन हीन सरकार के -जो आतंकवाद के खिलाफ लम्बी लड़ाई की बात करतें हैं इसे आलमी घटना बतलातें हैं और कोंग्रेस प्रेसिडेंट के मुंह में तो दही रखा हुआ है .एक बोल नहीं निकला .शायद शर्म आ गई .
शनिवार, १० सितम्बर २०११
अब वो अन्ना से तो पल्ल्ला छुडा रहें हैं .

ZEAL ने कहा…

हमारी सरकार मजबूर नहीं है बल्कि मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए मासूमों की जान लेती है।

दिवस ने कहा…

आदरणीय बहन रेखा जी, सबसे पहले देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ|
ये धमाके होते ही इसलिए हैं ताकि इन्हें चर्चा में लाकर चुपके से अपनी करतूतों को अंजाम दिया जा सके|
अब आप ही देखिये, इस धमाके के पीछे सोनिया का भारत लौटना व बांग्लादेश के साथ समझौता, दोनों कतूतें छुप गयीं|
नेताओं का तो काम ही यह है की धमाके के बाद दो चार घोषणाएं कर अपना पल्ला झाड लो| आतंकियों को पकड़ने की ज़रूरत ही नही है, ज़रूरत है इनके आकाओं को पकड़ने की, जो हमारे देश की सत्ताओं पर बैठे हैं|
मैं दावे के साथ कहता हूँ की भारत में होने वाले सभी आतंकी हमले कांग्रेस प्रायोजित होते हैं|

रेखा जी, वर्तमान परिपेक्ष्य को आपने बेहतरीन समझाया है| आपकी प्रस्तुति की सबसे ख़ास बात ये कार्टून चित्र होते हैं| बेहतरीन, कहाँ से ढूंढ कर लाती हैं या ये आप खुद बनाती हैं?

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

शर्मनाक रवैया है सरकार का....
आतंकियों के प्लान की तरह शासन के जवाब भी पूर्व निर्धारित ही होते हैं... कुछ याद हो आया...

"कैसे ना जीस्त की कीमत लगेगी
मासूम मौतों पर हर्जाने का साज है
ये बेशर्म हकीकत ही हमारा आज है."

इस चिंतन के लिए सादर साधुवाद...

Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…

एक नेता ने तो यहाँ तक कह दिया की अब तो भारतीय इन धमाको के साथ जीना सिख गए है,
अजी , जीना नहीं सीखे तो क्या करे?
आप तो कुछ करने से , आप लोगो को एक दूजे की टांग खिचाई से फुरसत मिलाती है, तो घोटालो के पैसे गिनने में बीत जाते हैं.
मैंने बहुतो को कहते सुना की अगर बम दमको में नेताओ की जान जाये तो ही ये कुछ करेंगे
मैं ये कहता हूँ ये तब भी कुछ नहीं करेंगे... संसद के हमलावरों को का क्या कर लिया है इन्होने

virendra sharma ने कहा…

प्रधान मंत्री जांच को दिशा देते हुए कह रहें हैं -जांच में कोई भेदभाव न हो ,किसी के साथ ज्यादती न हो .यानी जांच एजंसियों का एक हाथ पीछे बाँध के जांच करने के लिए कह रहें हैं .शुक्रिया रेखाजी आपकी फौरी ब्लोगिया दस्तक के लिए .

अभिषेक मिश्र ने कहा…

उपयुक्त कार्टून्स के साथ विचारणीय पोस्ट.

Vandana Ramasingh ने कहा…

विचारणीय मुद्दा ....बढ़िया लेख

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मन को झकझोरने में सक्षम पोस्‍ट।
हार्दिक बधाई।
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क्‍यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।

कुमार राधारमण ने कहा…

इस बार माना तो है कि व्यवस्था में कुछ कमजोरियां हैं जिनका फायदा आतंकवादी उठा रहे हैं। और क्या चाहिए उन लोगों को जिनके परिजन बिछड़ गए?

Maheshwari kaneri ने कहा…

सटीक और सार्थक लेखन ... विचारणीय पोस्ट...

मनोज कुमार ने कहा…

यथार्थ की परतें खोलती रचना।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

sateek lekhan, shubhkaamnaayen.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है ... वाकई हम आदो हो गए हैं इन सब को लगातार सुनने के ...

G.N.SHAW ने कहा…

रेखा जी आप ने बिलकुल सही तस्वीर उधृत किया है ! हमारी सरकारे नपुंसक हो गयी है !

S.N SHUKLA ने कहा…

sundar rachna ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

डा० जगदीश व्योम ने कहा…

बहुत सुन्दर ! विशेष रूप से कार्टून के माध्यम से अभिव्यक्ति सजीव हो गई है। वधाई आपको,।

रजनीश तिवारी ने कहा…

हम अपना आंतरिक सुरक्षा तंत्र अभी तक इतना शक्तिशाली और सुगठित नहीं बना सके जो आतंकवादी हमलों से हमें बचा सके। सुरक्षा के प्रति अपने और सरकारों( केंद्र तथा राज्य) के रवैये में खासे बदलाव की आवश्यकता है साथ ही इसमें बहुत खर्च की भी आवश्यकता है कुछ प्राथमिकताओं को बदलना भी अब जरूरी हो गया है । बहुत अच्छा लेख।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

देश में आतंकवाद के दंश ....और सरकार की गैर जिम्मेदार भूमिका
बहुत खूबसूरती से उभारा है.. आपके व्यंग्य चित्रों ने
बहुत सुन्दर ...

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट।

Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…

कृपया कुछ नया लिखे और इसी तरह के ज्वलंत मुद्दे पे


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मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
ड्रैकुला को खून चाहिए, कृपया डोनेट करिये! पार्ट-1
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संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक लेखन
@ रेखा जी
अवसर मिले तो जरूर छिंदवाडा जाइएगा

Kailash Sharma ने कहा…

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !

Always Unlucky ने कहा…

I know i am so late to read this post. but thank you for this excellent information. I hope to get a lot of good information like this here

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