स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

मंगलवार, 31 मई 2011
शनिवार, 28 मई 2011
आई आई टी और सुपर -30
वर्तमान समय में अधिकांश माँ बाप अपने बच्चो को इंजीनियर बनता हुआ ही देखना चाहते है .
इंजीनियरिंग के लिए भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान ( आई आई टी )भारत का सबसे महत्वपूर्ण संस्थान है.
हर छात्र के लिए इस संस्थान से जुड़ना एक सपने के सामान है और छात्र उस सपने को पूरा करने के लिए भरपूर प्रयास करते है.
आई आई टी मुंबई हो या कानपुर सभी छात्रों को एक प्रवेश परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है और इस प्रवेश परीक्षा में सफल छात्र ही आई आई टी और इससे संबध संस्थानों में प्रवेश पा सकते है. इस प्रवेश परीक्षा में सफल होने के लिए छात्र दुसरे राज्यों में भी जाकर विभिन्न कोचिंगो का सहारा लेते है .
हर छात्र के लिए इस संस्थान से जुड़ना एक सपने के सामान है और छात्र उस सपने को पूरा करने के लिए भरपूर प्रयास करते है.
आई आई टी मुंबई हो या कानपुर सभी छात्रों को एक प्रवेश परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है और इस प्रवेश परीक्षा में सफल छात्र ही आई आई टी और इससे संबध संस्थानों में प्रवेश पा सकते है. इस प्रवेश परीक्षा में सफल होने के लिए छात्र दुसरे राज्यों में भी जाकर विभिन्न कोचिंगो का सहारा लेते है .
इसी क्षेत्र में बिहार का एक नाम अपनी अलग छवि बनाने में लगातार कामयाब हो रहा है और आज कल सुर्ख़ियों में है.
जी हाँ हम आनंद कुमार द्वारा संचालित सुपर - 30 की बात कर रहे है. आनंद कुमार ने करीब एक दशक पहले इस कोचिंग को शुरू किया .जिसमे वे गरीब तबके के तीस प्रतिभावान छात्रों को निशुल्क कोचिंग देते है. इन तीस छात्रों के रहने ,खाने ,सोने की पूरी व्यवस्था आनंद कुमार द्वारा की जाती है. आनंद कुमार इसके लिए धन की व्यस्था अपने एक अन्य संस्थान से करते है.
इस बार तीस छात्रों में से चौबीस छात्रों का चयन इस परीक्षा में हुआ है जबकि पिछले तीन बर्षो से सभी तीस के तीस विद्यार्थियों का चयन हो रहा था . इस साल के नतीजे से वे बिलकुल भी मायूस नहीं है. इस बर्ष चयनित छात्रों में मोबाईल मेकेनिक, खोमचे वाले ,ट्रक ड्राईवर और किसान के बेटे शामिल है.
अब तक आनंद की इस कोचिंग के माध्यम से 236 छात्र आई आई टी में प्रवेश पा चुके है. अपने इस बेहतरीन प्रयास के लिए आनंद कुमार को अनेक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके है .टाइम मैगजीन ने उनके कोचिंग सुपर -30 को बेस्ट ऑफ एशिया 2010 में शामिल किया था .
आनंद कुमार का एडमिशन ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हो गया था लेकिन पैसे की कमी की वजह से वह पढ़ाई के लिए वहां नहीं जा पाए. आनंद के मुताबिक उस दिन के बाद से ही उन्होंने सोच लिया कि अपने अधूरे सपनों को वह गरीब तबके के छात्रों के जरिए पूरा करेंगे. समझ में ये नहीं आ रहा है कि हम उनके अधूरे सपने पर अफ़सोस करे या ख़ुशी जाहिर करे .हमारे देश से अनेको छात्र विदेशो में जाकर वहां अपनी प्रतिभा दिखाते है और एक सफल व्यक्ति माने जाते है. परन्तु बहुत कम ही व्यक्ति ऐसे होते है जो सफलता पाने के बाद मुड़कर पीछे देखते है और अपने देश और मिटटी के बारे में सोचते है. शायद उनका विदेश न जाना हमारे देश के हित में ही रहा .
आने वाले दिनों में गरीबों के लिए पढाई और महँगी होती जाएगी तब शायद एक नहीं अनेकों आनद कुमार की हमें जरुरत होगी. भविष्य में वे एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना करना चाहते है जो केवल गरीब विद्यार्थियों के लिए होगा. हम उनको शुभकामनाये देना चाहते है कि वो अपने मुहीम में कामयाब हों.
रविवार, 22 मई 2011
यु पी ए सरकार के दो बर्ष
यु पी ए सरकार के आज दो बर्ष हो गए है . इन दो बर्षो में इस सरकार ने काफी उतार-चढ़ाव देखे है . उतार ज्यादा देखे है और चढ़ाव नहीं के बराबर देखे है . यु पी ए सरकार की यह पारी आरम्भ से ही बदनामी की चादर ओढ़ी हुई है.अभी तक संसय की स्थिति है कि सरकार की बागडोर मनमोहनजी के हाथ में है या मैडम सोनियाजी के हाथ में .
महंगाई और भ्रस्टाचार की मार से यह सरकार उबर ही नहीं पा रही है . इन दो बर्षो में महंगाई पर नियंत्रण करना तो दूर हर महीने यह महंगाई कुछ बढ़ ही जाती है. परन्तु आम जनता की आमदनी उतनी नहीं बढ़ पाती है. सत्ता में बैठे लोग अपने आप को इसे रोकने में असमर्थ बता रहे है. दरसल वो बड़े बड़े घोटालो के जाल में इस तरह फंसे हुए है कि जनता के बारे में सोचने का समय ही नहीं है.
आप सब जानते है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार अगर नहीं पड़ी होती तो मनमोहन सरकार को राजा, कलमाड़ी और कनीमोझी जैसे लोगो को सलाखों के पीछे पहुचाने में और कई साल लग जाते .शायद उन्हें जेल पहुंचाते पहुंचाते सरकारे भी बदल जाती .
पिछले साल की वह घटना याद होगी जब अनाज की अनेको बोरिया बारिश की भेट चढ़ गई थी और कोर्ट ने इस मामले में दखलंदाजी करते हुए आदेश दिया था कि यह अनाज गरीबो में तत्काल बाँट दिया जाय , परन्तु हमारे माननीय कृषि मंत्री को पता नहीं क्यों यह बात पसंद नहीं आई थी.
इस बर्ष कोर्ट ने पहले से ही सरकार को चेता दिया है कि देश का कोई भी व्यक्ति भूखमरी से मरना नहीं चाहिए आगे देखते है क्या होता है.
माननीय कृषि मंत्री का दूध और चीनी का मूल्य बढ़ाने में अहम् यागदान रहा . यहाँ तक कि मीडिया से जुड़े कई लोगों ने उन्हें महंगाई का ज्योतिषी भी कह दिया.
पेट्रोल और डीजल के दाम का तो कहना ही क्या यह तो एक दानव की तरह आम जनता के कमाई का एक बड़ा हिस्सा चट करने लगा है.
काले धन को देश में वापस लाने के मामले में इस सरकार को तो अभी बहुत कुछ करना बाकी है . इस मामले में सरकार या तो कोई ठोस कदम उठाना ही नहीं चाहती है या फिर छोटे मोटे कदम से जनता को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही है.
फिलहाल यु पी ए सरकार के पास न तो ख़ुशी जाहिर करने लायक कोई मुद्दा है और न ही इन दो सालो में कोई उपलब्धि . कुल मिला के इस सरकार को वर्तमान परिस्थिति में जश्न की नहीं बल्कि चिंतन और मनन की अधिक आवश्यकता है.
शनिवार, 14 मई 2011
मुआवजा और मनमानी
भारत सन १९४७ में आजाद हो चुका है, परन्तु अंग्रेजी सरकार की नीतियों और कानूनों का अनुसरण करते हुए ऐसा लग रहा है की जैसे की हम पूरी तरह से आजाद नहीं हो पाए है . अंग्रेज तो बहुत पहले जा चुके है परन्तु उनके द्वारा बनाये हुए बहुत से कानून को हम आज भी ढो रहे है जैसे की वह हमारी खानदानी विरासत हो . भारत सरकार इस इक्कीसवी सदी में भी भारतीय नागरिकों की स्वतंत्र सोच पर इन कानूनों के माध्यम से लगाम लगाये हुए है . इन कानूनों में प्रमुख कानून जैसे
ओफिसिअल सीक्रेट एक्ट १९२३
लैंड एक्युजेसन एक्ट १८९४
रिजर्ब बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट १९३४
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और ऐसे ही जाने कितने एक्ट.
क्या हमें इन नीतियों और कानूनों में पुनः संसोधन करने की आवश्यकता आज भी महसूस नहीं होती है.
यदि आप नौकरीपेशा है और कभी आपको ऐसा कह दिया जाय कि अब आप नौकरी नहीं कर सकते है और इसके बदले ये मुआवजा ले लीजिये तो जरूरी नहीं है कि आप खुश हो जायेंगे वो भी तब जब आप किसी अन्य क्षेत्र में कार्य कर पाने में असमर्थ हो .
किसान जिसके पास केवल जमीन होती है और उस जमीन से वह फसल उगाकर अपने परिवार के बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ साथ हमारे देश कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है . किसान केवल फसल उगाना जनता है और कई पीढ़ी से केवल फसल उगा रहा है .किसान के लिए यही नौकरी है और यही व्यवसाय है.
किसानो के जमीन के अधिग्रहण का प्रयास प्रगति के नाम पर चाहे जैतापुर हो या नॉएडा होता ही रहा है जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी करता ही रहा है..
उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने नॉएडा से आगरा तक एक्सप्रेस वे बनाने के मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा है. वह फ़ॉर्मूला वन रेस के लिए विदेशों जैसा रेसिंग ट्रेक भी बनाना चाहती है .पिछले बर्ष २००९-१० में किसानो से अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा बसपा सरकार ने दिया था और मायावती जी का यह भी दावा है कि उनकी सरकार ने अन्य पडोसी राज्यों के मुकाबले बेहतर मुआवजा और पुनर्वास पॅकेज दिया था. अब किसानो का आन्दोलन यह साबित कर रहा है कि उनके साथ धोखा किया गया . दरसल बात यह है कि नॉएडा और आस पास की जमीन अब बेशकीमती हो गई है. पर सरकारी कीमत उससे कही भी मेल नहीं खाती है.
चूँकि देश की राजधानी दिल्ली से करीब होने तथा निर्यात सम्बन्धी सभी सुबिधायें उपलब्ध होने के कारण बड़ी बड़ी कंपनियों ने वहां अपना ठिकाना बना लिया है.तो इस हालत में किसान कैसे बर्दाश्त करे कि उनकी उपजाऊ और कीमती जमीन १८९४ में बने अंग्रेजो के द्वारा बने भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर सरकार हथिया ले और उसे भरी मुनाफे पर बिल्डरों के हवाले कर दे . वे चाहते है की उन्हें रियल इस्टेट बिजनेस के भागीदार की तरह मुआवजे की रकम मिले .
इस घटना का फायदा उठा कर कांग्रेस और भाजपा अपनी राजनीती चमकाने में लगे है.क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य में अगले बर्ष विधान सभा चुनाव भी होने वाले है. अब मायावती भी क्यों पीछे रहे सो उन्होंने भी इन पार्टियों से यह मुद्दा संसद में उठाने के लिए कहा और उस मुद्दे को केंद्र पर डालते हुए कहा की वह मुआवजा कानून में संसोधन करे.
मजे की बात यह है की २००७ में तैयार किये गए भू अधिग्रहण और पुनर्वास से जुड़े हुए दो विधेयक के मसौदे केंद्र सरकार के ठन्डे बस्ते में है. सच्चाई तो यह है कि व्यावसायिक हितों और आद्योगिक समूहों को हर पार्टी सरक्षण देती है .
खैर आगे जो भी हो फिलहाल तो कोंग्रेस और भाजपा दोनों ही उत्तर प्रदेश की राजनीती में अपने आपको किसानो का हमदर्द बनने कि होड़ में लगे है.
बुधवार, 11 मई 2011
भोपाल गैस त्रासदी
आप सब को तो पता ही होगा की भोपाल ने अपनी पहचान किस घटना के जरिये लोगो के बीच बनाई है .
जी हाँ, हम उसी घटना (भोपाल गैस त्रासदी ) का जिक्र कर रहे है.
उच्चतम नयायालय के वर्त्तमान फैसले को अगर ध्यान में रखा जाय तो इसने पीड़ित लोगों को सबसे ज्यादा निराश किया क्योंकि अब आरोपियों के न तो कोई नया मुकद्दमा चलाया जायेगा न ही उनकी सजा में कोई इजाफा किया जायेगा.
आपको बता दें कोर्ट में सीबीआई की उस अपील को ठुकरा दिया है जिसमें कहा गया था कि इस मामले में जो दोषी है उन्हें जुर्म के मुताबिक सजा नहीं सुनायी गई है। इसलिए उनको कड़ी से कड़ी सजा सुनाई जाये। जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा दोषियों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा नहीं चला सकते हैं।
दो -तीन दिसंबर १९८४ को भोपाल में होने वाली ये भीषण घटना आज भी हमारे जेहन में हैं जिसमे यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसने वाली गैस मिथाइल आइसो साइनेट से तत्काल तीन हज़ार लोगो की मौत हो गई थी . बाद में यह संख्या २५००० तक पहुँच गई थी . इस गैस ने करीब एक लाख लोगो को उस समय प्रभावित किया था.अनुमान यह है कि अभी भी ५००००० लोग इससे प्रभावित है. इस घटना के लिए सीधे तौर पर DOW या UCC को जिम्मेदार ठहराया गया था .
यूनियन कार्बाइड कंपनी के चेयरमेन एंडरसन को उस समय भोपाल पुलिस के द्वारा गिरफ्तार भी किया गया था. लेकिन तत्कालीन मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उसके जमानत कि व्यवस्था कुछ ही घंटो में कर दी . बाद में एंडरसन को सरकारी विमान से मुंबई भेज दिया गया . मुंबई से जो एंडरसन ने अमरीका के लिए उडान भरी तो फिर भारत कि तरफ मुड़ के भी नहीं देखा.
बाद में हर साल दिसंबर में भोपाल गैस त्रासदी की बरसी मनाने की रस्म पूरी होती रही जो अब भी लगातार जारी है. पिछले साल इसकी पच्चीसवीं बरसी मनाई गई .
किसी भी आद्योगिक इकाई के साथ तो खतरा जुडा ही रहता है . इसलिए यूनियन कार्बाइड कंपनी के साथ भी खतरा जुडा हुआ था. अधिकतर ऐसी घटना होने पर सम्बंधित आद्योगिक इकाई पीडितो के साथ न्याय करने और अपनी जिम्मेदारी निभाने की जगह अपने बचाव में लग जाती है. एंडरसन को इस तर्क के साथ जाने दिया गया कि यदि मेरे ड्राईवर ने किसी को कुचल दिया तो उसकी सजा मैं क्यों भुगतू.
लेकिन कोरपोरेट जगत में कोई एक दुर्घटना से कंपनी का नाम ख़त्म नहीं हो जाता है. कंपनी भारत में पुनः निवेश करने कि इच्छुक है इसलिए वह भारत सरकार से संपर्क करती है .
वर्तमान समय में यह कंपनी पुणे में अपना नया प्लांट लगाने का प्रयास कर रही है.
न्यायालय का तो निर्णय आ गया क्योंकि न्याय करते समय निष्पक्ष न्याय के लिए आँखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है. लेकिन सरकार आँखे बंद कर के नहीं चलाई जा सकती है . सरकार को इस दिशा में पुरे आँख खोल के निर्णय लेने चाहिए . सरकार पिछली घटनाओं से सीख लेकर कम से कम उस कंपनी को प्रतिबंधित कर ही सकती है ताकि इस तरह कि भीषण त्रासदियों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके....
सोमवार, 9 मई 2011
ओसामा के बाद
ओसामा का अंत हो चुका है अब समीक्षाएं चल रही है. सूत्रों के अनुसार अमरीका ने पहले ओसामा को अफगानिस्तान के तोराबोरा की पहाड़ियों में खोजने में और बाद में पाकिस्तान के बिभिन्न इलाको में भी उसे खोजने में पैसे बर्बाद किये .इसे पैसे का सदुपयोग समझे या दुरूपयोग . फिलहाल अमरीका ने पुरे ओसामा के अभियान में ३० ख़राब डोलर खर्च किये.
ओसामा की मौत के बाद अलग अलग प्रतिक्रिया देखने को मिली . लेकिन क्योटा, पाकिस्तान में अनेक लोग ओसामा बिन लादेन के समर्थन में देखने को मिले . लोग ओसामा के समर्थन में नारे लगते हुए भी दिखाई दिए.
समर्थन में रैली तक तो ठीक है लेकिन यहाँ के लोगो के लिए ओसामा शायद एक बड़ा नायक भी है.ओसामा के बड़े पोस्टर भी यहाँ के बाजारों में दिखाई दिए.
ओसामा की इतनी हैसियत थी हम लोग तो कभी सोच भी नहीं पाए . पाकिस्तान जैसे देश के लिए ये सब शायद आम बात हो सकती है. आतंकवादियों के बड़े बड़े आकाओं के गढ़ तो पाकिस्तान में है ही .
अमरीका के राष्ट्रपति ने अभियान में भाग लेने वाले नेवी सील के अधिकारीयों से मुलाकात की और उनकी ख़ूब प्रसंशा की .
फिलहाल कुछ भी हो सारे के सारे विश्व में शांति रहनी चाहिए और शांति भंग करने में नंबर एक आतंकी ओसामा बिन लादेन के अध्याय का अंत हो चुका है.
रविवार, 8 मई 2011
मदर्स डे की शुभकामनाये
आज के दिन हर कोई अपनी माँ को हैप्पी मदर्स डे कहते हुए देखा जा सकता है . प्रमुख सर्च इंजन गूगल ने माँ को समर्पित इस दिन को खाश बनाने के लिए अपनी वेबसाइट मदर्स डे को समर्पित कर दी है.
ये मदर्स डे हमारे संस्कृति का हिस्सा तो नहीं है क्योंकि हमारे यहाँ तो माँ को वो जगह दी जाती रही है जो भगवान से भी ऊपर है और माँ को किसी खास दिन से बांधा नहीं जा सकता है .
फिर भी में इसके खिलाफ इसलिए नहीं हूँ क्योंकि हमारे देश में भी पश्चिमी देशो का असर बढ़ता जा रहा है और यहाँ भी नई पीढ़िया इस तरह भागदौड़ की जिन्दगी जी रही है कि उनको रिश्तो को सँभालने और सवारने का समय नहीं मिल पाता है इसलिए मेरे बिचार से कम से कम इसी बहाने अपनी माँ के लिए आज का दिन बच्चे खास बना सकते है.
अंग्रेजी भाषा में GOD माने भगवान है
G मतलब generator जो सृजन करे यानि ब्रह्मा जी ब्रह्मा जी ने सृष्टि की वृद्धि के लिए अपनी शक्ति से लाखो पुरुषो को रचा जो भगवान की भक्ति में लीन हुए परन्तु सृष्टि की वृद्धि नहीं हुई .
O मतलब Operator जो पालन पोषण करे यानि विष्णु जी
D मतलब Destructor यानि जो अंत करे यानि महेश .( शिवजी )
ये तीनो चक्र केवल नारी ही कर सकती है .इसके गर्भ में देवता, बड़े बड़े महात्मा , विद्वान , बड़े बड़े बैज्ञानिक ,अविष्कारक , राजनीतिज्ञ सम्राट या शूरवीर पैदा होते है इतना तो ब्रह्मा जी भी नहीं कर सकते है . जीव के गर्भ में आते है उसका पालन पोषण खुराक, प्राण वायु शरीर की समस्त मशीनरी का संचालन होता है . वह जीव गर्भ में पूर्ण तय सुरक्षित रहता है . उसे अपने स्वस्थ्य निर्माण हेतु आवश्यकतानुसार खुराक प्राप्त होती रहती है
समयानुसार जब वह जीव नारी गर्भ से संसार में आता है तब नारी माँ का रूप धारण कर अपने शरीर से पूर्ण ममता रूपी अमृत का सृजन कर जीव का पोषण करती है. माँ उस जीव को अपनी आँचल की छाया में सुरक्षित रखती हुई रात दिन उसका लालन पालन करती है . इस तरह माँ अपना सारा जीवन अपने संतान के पालन पोषण में लगा देती है. इतना तो विष्णु जी भी नहीं करते है. अतः सारे यश धन बैभव देने वाली लक्ष्मी रूपा है .
शिक्षा ज्ञान देने वाली सरस्वती रूपा है. ऐसा कहा भी जाता है की बच्चो की प्रारंभिक शिक्षा माँ से शुरू होती है. माँ की ऊँगली पकड़ के ही अपने पैरो पर खड़ा होना सीखता है.
आधुनिक भारत के महानगरों में लोग इतनी व्यस्तता भरी जिन्दगी जीते है कि यहाँ चाह कर भी माँ अपने बच्चे पर चाह कर भी भरपूर ममता नहीं लूटा पाती जिस पर बच्चे का हक़ होता है. आजकल माँ बाप दोनों नौकरी करते है इसलिए उन्हें मजबूरन बच्चो को पालना घर या प्ले स्कूल में छोड़ना पड़ता है . असली माँ की ममता गावों या छोटे शहरो में देखने को मिलती है .
लेकिन माँ तो माँ ही होती है चाहे वह गाँव की हो या शहर की उसे अपने बच्चे की सारी तकलीफ पता ही होती है.
मै बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे एक साथ कई माँओं का प्यार मिला है. अब आप सोचते होंगे कि कई माँ कैसे हो सकती है तो बात ये है कि मुझे जनम देने वाली माँ की ममता तो मिली ही परन्तु कुछ दिनों तक उसके बाद मुझे पालने वाली माँ का भरपूर प्यार मिला और सही मायनों मै आज मै माँ शब्द उन्ही के लिए प्रयोग करती हूँ. मै इतनी भाग्य शाली हूँ की अभी भी कई लोग मुझे अपने बच्चे की ही तरह चाहते है. इसलिए आज की ये पोस्ट माँ को समर्पित है.
शुक्रवार, 6 मई 2011
अक्षय तृतीया की शुभकामनाए
अक्षय तृतीया का दिन एक पवित्र दिन है और यह बैसाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है. इस पुरे के पुरे दिन को ही शुभ दिन माना जाता है . आज अक्षय तृतीया है और आप सभी लोगो को अक्षय तृतीया की शुभ कामनाए.
हिंदु धार्मिक मान्यताओ के अनुसार भगवान विष्णु ही सृष्टि के रक्षक और पालक है और आज का दिन भगवान विष्णु का ही दिन है. आज भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परुशराम का जन्म दिन भी मनाया जाता है.
त्रेता युग का प्रारंभ आज से ही हुआ था और आज ही के दिन माता गंगा का भी अवतरण पृथ्वी पर हुआ है. हिंदी में अक्षय का अर्थ है जो कभी नष्ट नहीं होता है . इसलिए आज के दिन किये गए दान पुण्य का अवश्य फल प्राप्त होता है एवं कोई भी नया कार्य जो आज प्रारंभ किया गया हो उसमे सफलता और उन्नति का होना अनिवार्य है . आज के दिन प्रारंभ किये गए कार्य सौभाग्यशाली और सफल होते है .इसलिए आज बहुत से लोग सोने के गहने- जवाहरात भी खरीदते है .
आज के दिन का विशेष महत्व है इसलिए अक्षय तृतीया आप लोग मनाये जरूर . एक बार फिर से आप सभी को अक्षय तृतीया और परुशराम जयंती की शुभकामनाए .
ओबामा, ओसामा,मीडिया और कनफूजन
किसी ने सच ही कहा है कि नाम में क्या रखा है काम देखो यारो .लेकिन यदि एक नाम दुनिया के सबसे शक्तिशाली दस्त के राष्ट्रपति का और दूसरा आतंकवादियों का मुखिया हो तो फर्क तो पड़ता ही है. पड़ना ही चाहिए.
लेकिन फर्क किसको पड़ता है .......?
किसी को नहीं . कोई फर्क पड़ने दे तब तो फर्क पड़े . भारत के दर्शको के साथ साथ सारी दुनिया ने ओसामा और ओबामा के नामों में समानता का खूब लुफ्त उठाया.
जब दो मई को ओसामा के मौत का समाचार मीडिया में आया तो बहुत से टी वी चैनल गच्चा खा गए. कोई ओबामा को मार रहा था तो कोई ओसामा को पाकिस्तान का दौरा करबा रहा था.
जहाँ एन डी टी वी इंडिया ने ओबामा के सर में गोली मार दी वहीँ अमरीकी चैनल फोक्स न्यूज़ ने भी अपने राष्ट्रपति को नहीं बख्शा और ब्रेकिंग न्यूज़ में ओबामा बिन लादेन के मरने की पुष्टि कर दी .
सबसे ज्यादा बिकने वाले अंग्रेजी अख़बार का दावा करने वाले टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने वेब साईट पर ओबामा को सबसे युवा पत्नी के साथ पाए जाने की खबर को प्रकाशित किया .
एक अन्य वेब साईंट ने यह प्रकाशित किया की ओसामा बिन लादेन अपने पाकिस्तान दौरे को लेकर पशोपेश की स्थिति में है.
कुल मिलाकर मीडिया ने भी आपस में ब्रेकिंग न्यूज़ के बहाने खूब दौड़ लगाई और इतने बड़े संवेदनशील मुद्दे को हास्यास्पद बना दिया .
वर्तमान समय में जहाँ मीडिया इतना सशक्त और सक्षम है कि वो जनता को सही दिशा और दशा के वारे में अवगत करा सके . उस समय मीडिया का ये गैरजिम्मेदारी पूर्ण रवैया अशोभनीय है. यहाँ ओसामा और ओबामा दोनों चर्चित चेहरे है और इन दोनों के विपरीत व्यक्तित्व से आम जनता वाकिफ है इसलिए संशय का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.लेकिन भविष्य में इस तरह की गलती फिर से न हो इसलिए मीडिया को तैयार रहना होगा.
ओबामा, ओसामा,मीडिया और कनफूजन
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