आप सब को तो पता ही होगा की भोपाल ने अपनी पहचान किस घटना के जरिये लोगो के बीच बनाई है .
जी हाँ, हम उसी घटना (भोपाल गैस त्रासदी ) का जिक्र कर रहे है.
उच्चतम नयायालय के वर्त्तमान फैसले को अगर ध्यान में रखा जाय तो इसने पीड़ित लोगों को सबसे ज्यादा निराश किया क्योंकि अब आरोपियों के न तो कोई नया मुकद्दमा चलाया जायेगा न ही उनकी सजा में कोई इजाफा किया जायेगा.
आपको बता दें कोर्ट में सीबीआई की उस अपील को ठुकरा दिया है जिसमें कहा गया था कि इस मामले में जो दोषी है उन्हें जुर्म के मुताबिक सजा नहीं सुनायी गई है। इसलिए उनको कड़ी से कड़ी सजा सुनाई जाये। जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा दोषियों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा नहीं चला सकते हैं।
दो -तीन दिसंबर १९८४ को भोपाल में होने वाली ये भीषण घटना आज भी हमारे जेहन में हैं जिसमे यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसने वाली गैस मिथाइल आइसो साइनेट से तत्काल तीन हज़ार लोगो की मौत हो गई थी . बाद में यह संख्या २५००० तक पहुँच गई थी . इस गैस ने करीब एक लाख लोगो को उस समय प्रभावित किया था.अनुमान यह है कि अभी भी ५००००० लोग इससे प्रभावित है. इस घटना के लिए सीधे तौर पर DOW या UCC को जिम्मेदार ठहराया गया था .
यूनियन कार्बाइड कंपनी के चेयरमेन एंडरसन को उस समय भोपाल पुलिस के द्वारा गिरफ्तार भी किया गया था. लेकिन तत्कालीन मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उसके जमानत कि व्यवस्था कुछ ही घंटो में कर दी . बाद में एंडरसन को सरकारी विमान से मुंबई भेज दिया गया . मुंबई से जो एंडरसन ने अमरीका के लिए उडान भरी तो फिर भारत कि तरफ मुड़ के भी नहीं देखा.
बाद में हर साल दिसंबर में भोपाल गैस त्रासदी की बरसी मनाने की रस्म पूरी होती रही जो अब भी लगातार जारी है. पिछले साल इसकी पच्चीसवीं बरसी मनाई गई .
किसी भी आद्योगिक इकाई के साथ तो खतरा जुडा ही रहता है . इसलिए यूनियन कार्बाइड कंपनी के साथ भी खतरा जुडा हुआ था. अधिकतर ऐसी घटना होने पर सम्बंधित आद्योगिक इकाई पीडितो के साथ न्याय करने और अपनी जिम्मेदारी निभाने की जगह अपने बचाव में लग जाती है. एंडरसन को इस तर्क के साथ जाने दिया गया कि यदि मेरे ड्राईवर ने किसी को कुचल दिया तो उसकी सजा मैं क्यों भुगतू.
लेकिन कोरपोरेट जगत में कोई एक दुर्घटना से कंपनी का नाम ख़त्म नहीं हो जाता है. कंपनी भारत में पुनः निवेश करने कि इच्छुक है इसलिए वह भारत सरकार से संपर्क करती है .
वर्तमान समय में यह कंपनी पुणे में अपना नया प्लांट लगाने का प्रयास कर रही है.
न्यायालय का तो निर्णय आ गया क्योंकि न्याय करते समय निष्पक्ष न्याय के लिए आँखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है. लेकिन सरकार आँखे बंद कर के नहीं चलाई जा सकती है . सरकार को इस दिशा में पुरे आँख खोल के निर्णय लेने चाहिए . सरकार पिछली घटनाओं से सीख लेकर कम से कम उस कंपनी को प्रतिबंधित कर ही सकती है ताकि इस तरह कि भीषण त्रासदियों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके....
4 टिप्पणियां:
bahut sahi aalekh likha hai... main iske link logon tak pahunchati hun ... shayad slim ho jaun , kyun ?
sarkar ki aankhe patti se nahi apne swarth ki vajah se band hai. ye vidambna hi hai ki itani bhayanak trasdi ke aaropi company ko fir hamare desh me business karne ki manjoori di ja rahi hai.nyay abhi tak hua nahi hai aur aage hone ki umeed bhi nahi hai lekin us company ko bharat lane ka virodh to poori takat se kiya ja sakta hai.
उस कंपनी का भारत में वापिस आना सरकार कि कमजोरी को उजागर करता है
पर कुछ दिनों में ये बात ....एक अफसाना बन के रहे जाएगी ..अफ़सोस ...होता है ऐसे मुद्दों पर
जब कुछ दीन बाद हम जैसे लोग सब कुछ भूल जाते है
कम से कम उस तरह से किसी कंपनी को तो दुबारा यहाँ पर अपना प्लांट लगाने कि अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन अगर सरकार के किसी भी व्यक्ति के रिश्तेदार या परिवार वाले ने ये त्रासदी झेली होती तो उसकी गंभीरता को समझा जा सकता था नहीं तो देश के फायदे के नाम पर सौदे होते रहते हैं वह भी आँख बंद करके . फायदा किसका हैं ये तो सभी जानते हैं.
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