जो सुमिरत सिधि होई गन नायक करिबर बदन .
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ..
(जिनके स्मरण से सारे कार्य सिद्ध होते है......वे मुझपे कृपा करे .)
धर्म के प्रति लोगो की अतिशय ग्लानी देख कर पृथ्वी अत्यंत व्याकुल हो गई और सोचने लगी की पर्वतो नदियों और समुद्रों का बोझ मुझे इतना भारी नहीं जान पडता है जितना भारी मुझे एक परद्रोही लगता है . सारे धर्मो को विपरीत देख कर हृदय में सोच विचार कर गौ का रूप धारण कर धरती वहाँ गई जहाँ सभी देवता और मुनी छुपे हुए थे . पृथ्वी ने रो कर अपना दुःख सुनाया पर किसी से कुछ काम न बना . अंत में ब्रह्माजी के सुझाव से सारे देवताओं ने शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान श्री हरि की स्तुति आरम्भ की ....
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनत पल भगवंता ......
जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह ..
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह..
उसी समय आकाशवाणी हुई हे मुनि,सिद्ध और देवताओं के स्वामी डरो मत , तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा ..
पवित्र चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन ज ब न तो बहु त सर्दी थी न बहुत गर्मी थी . वो पवित्र समय सब लोगो को शांति देने वाला था . उस समय दीनदयाल प्रभु प्र कट हुए .
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला .....
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार
अब शुरू तो ब्लॉग कल से ही करना था पर कुछ कारणों से आज से ये कार्य आरम्भ हुआ है.आप लोगो को रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाये . कल का दिन हमारे मिथिलांचल में जुड़शीतल पर्व मनाया जाता है.इस दिन हमारे यहाँ बड़े लोग अपने से छोटो के सर पर जल सहित हाथो का स्पर्श कर के आशीष देते है और बड़ी -भात व्यंजन बनाया जाता है. इस दिन को टटका पावन और इसके दूसरे दिन को बसिया पावन कहते है और यही बड़ी-भात दूसरे दिन बासी खाते है. इस दिन पेड़ पौधों को भी बड़ी-भात और पानी दिया जाता है.मैंने भी अपने बचपन में बहुत से आम और कटहल के पेड़ो को जुराया है . इस दिन हमारे यहाँ लोग कीचड़ पानी से होली भी खेलते है.
कल के दिन सबको हमारे पर्वो जुड़शीतल, बैसाखी , बंगला नव वर्ष , विशु .......आदि की शुभकामनाये .
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