शहर की इस दौड़ मैं दौड़ना क्या है ..............
अगर यही है जिंदगी तो मारना क्या है ................
इस विडियो के एक एक शब्द आज हमारी दिनचर्या या जीवन शैली का वर्णन करते है." मोबाइल और लैंड लाइन की भरमार है पर दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ है "
अगर यही है जिंदगी तो मारना क्या है ................
इस विडियो के एक एक शब्द आज हमारी दिनचर्या या जीवन शैली का वर्णन करते है." मोबाइल और लैंड लाइन की भरमार है पर दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ है "
इस वीडियो में हमने एक पंक्ति सुनी "इन्टरनेट की दुनिया से तो टच में है पर पड़ोस में कौन है जानते तक नहीं "
आप लोग समझ ही गए होंगे की हम नॉएडा के दो बहनों की घटना का जिक्र कर रहे है.
खुद को करीब सात महीने तक अपने है घर मैं कैद रखने वाली दो बहने सोनाली और अनुराधा को आख़िरकार एक समाजसेवी संगठन की सहायता से अपने ही कैद से आजाद कराया गया . बड़ी बहन अनुराधा का निधन बुधवार सुबह को अस्पताल में दिल का दौरा पडने से निधन हो चुका है उधर देर शाम को सोनाली की भी हालत बिगड़ गई . डाक्टरों के अनुसार उसका रक्तचाप गिर गया है और वह कुपोषण , निर्जलीकरण और अवसाद से ग्रसित है पुलिस का कहना है की माता पिता की मौत और छोटे भई के दूर चले जाने के कारण अनुराधा और सोनाली अवसाद ग्रस्त हो गए थे.अपने ही छोटे भाई से मतभेद के कारण वह अलग रह रहा था. उनका पालतू कुत्ता भी छ महीने पहले मर गया था . अब सवाल ये उठता है की इस परिस्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? माता पिता की मौत या भाई की बेरुखी या खुद वह बहने या उनके आस पास का सामाजिक परिवेश .दोनों बहने उच्च शिक्षा प्राप्त थी तो भी आत्म निर्भर न बन सकी .हमारे आधुनिक समाज में सुशिक्षित महिलाये परिस्थिति वस् अगर इतनी अवसाद ग्रस्त और असहाय महसूस कर सकती है तो फिर भारत की आम महिलाओं का क्या? ..
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